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________________ गिसी वितावा में जीवित रहे और अगर पिता मो जायें नो वृणा सो जाय? जगर ऐगा है ता न कृष्ण का वाइ मूल्य है और न महावीर का। जादमी के रफान, पों वे रेवाइ गणपराय रखाड ही अगर मन कुछ हैं तो ठीक है विना सा जायेगी और ये आदमी भी खा जायेंगे । मगर इतना सस्ता नरी है यह मामला दि इतनी वडी बनाएं घटें कोई परम सत्य को उपर घ हा और यह बात पर ममतार आदमिया यी कमजोर मापा म सुमित रहे। मेरा पहना है कि जगत् म जो भी परता है चाह यह महत्त्वपूर्ण हो या अमहत्त्वपूण वह कभी नष्ट नहीं होता और न उगे मनुष्य पर ही छाड दिया जाता है कि वह उसे सुरक्षित रखे। अधे मला उम व्यक्ति क अनुभव या सुरक्षित रग सपत ह जो कभी उनमे समाज म था और शिम जय माप मिर गई हा, प्रकार के दान हो गए हा? हम उम व्यक्ति को तुलना म मधे हैं जिसे सत्य की उपप हुदह जथवा जिमने गान शुजा स सत्य का माशातार किया है। ता में रहना चाहता हूँ कि अस्तित्व म घुछ भी नहा पाता। सच तो यह है कि मर ये शट भी बराबर मुसर रहेंग । जा पर एक बार पता हा गया है वह कमी लुप्त होगा । कृष्ण ने अगर घमी भी कुछ कहा है ता आज भी उसको पनि तरगेरिही तारों से निक्ट स गुजर रही है। ध्यान रह किरदन म जा बारा गया है जाप उसे ठीक उमो वक्त नहीं सुन लत, यावि ध्वनि-तरगावो आन म समय रगता है । जापभी भी योग गया है उसकी ध्वनि-तग्गे आज भी वनमान है पिहा तारा पे पास से गुजर रही हैं। यानी विमी तार पर महावीर वचन आज भी मुन जा रह हाइसरा क्या मतलब हुआ? इसका मतलब यह हुमा पि इस अन त बारा म-आन्त है इसलिए इराम घुछ नहा सो-जा भी पता होता है, यह यात्रा परता रहता है। इसी प्रकार और भी श्म तग्गें है जा पनि यी ना अनुभूति पी तरगें है। जब हम वारत तव ध्वनि का तरगें पग हाती हैं रबिन जब अनुभव परत है तर ति यी एमी तर पैदा होती है जो और मा गुम जाराम मात्रा यग्नी हैं। शिप्रसार रहिया स स्थर आराम पूमती हुई पनि-मरगा या परहा ता है उगा प्रसार अगर याद यात्रिय व्ययम्मा हा सय ता गूगम पाराम हुए मनु तरगा या पुल परडा वा गरा है । दाया गतर पर आ मि नामनिया भाभी TO हाता और न यह आलमा पराग गयामिया रहें पि पर मुगमित ग1 यदि हम मिनिट या रसपर पा मीर परत मिटि या मीलनुमति म हमरा रा गरा। Tirs पति हम रिमा गिप्ट व्यक्ति का पान न पार उतरें सा हम अपनी ही मारमा भूमिया मगर मात है। अपामार गम TITAसिनो सपा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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