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________________ महावीर परिचय और वाणी १५९ बैठन हैं, वसे ही हम भी बैटते ह। महावीर इस तरह के व्यक्ति नही ह । हम यह भी सयाल नहा है कि हम पास तरह के कपड़े पहनत ह ता सास तरह जादमी हो जात ह आर दूसरी तरह व कपड़े पहनते ह ता दूसरी तरह के आदमी हो जाते है, एक ढग से वठत है ता एव तरह के आदमी हो जात हैं और दूसरे टग मे वटत ह ता दूसरी तरह के जादमी । हमारा जो मस्तिप्य है वह इन छोट छाट सकेता पर ही जीता और चलता है। हो मकता है कि महावीर का उडू बटना एक अजीव घटना है। साधारणत वाई उक्ड नहीं बटता । उनका उपडू बटना गोटोहामन म ध्यान करना मेरी दष्टि म गहर से गहरा अय रखता है । वह यह कि चित्त पर इम तरह बटन वा काई जोर नहीं है पुगना । गरीर की इस स्थिति म पुराना चित्त जोर नही डा सकता। तीसरी वान जो म कहना चाहता हूँ यह है कि आसन से ध्यान या काइ सम्बर नहा है। ध्यान है आतरिक घटना आर आसन है बाहर गरीर की स्थिति । महावीर यह भी सूचना दना चाह रह हैं कि यह धारणा गलत है कि पद्मासन म या सितासन मे ही ध्यान होगा और ज्ञान की उपाधि हागी । यदि परमासन या सिद्धासन म ही नान हो तो इसका अर्थ यह भी हागा वि ज्ञान गरीर की बैठक से वेंधा है। अमर म पान को परीर से क्या लेना-देना ? भीतर जो है वह पिसी आसन म उपर पहा सकता है। महावीर के गोगहासन की मूर्तियां जनिया ये मदिरा म नहीं मिलती। मूतिया बनी ह पदमासन म, क्यापि पुरानी धारणा है कि पानी का पदमासन म मान हाता है। महावीर को हम जसा देखना चाहत है वसा ही बना लेते हैं । दिगम्बर महावीर के नग्न चिन भी बनाएंगे तो एक थाड के पास बनाएंगे, तायि पाट म उनको नानता छिप नाय । ये लोग महावीर स ज्यादा हानि यार है । थाह के पास महावीर को पडा करना चमानी है। रेरिन हमारा दिमाग अयत क्षुद्र है और अपन हिसाब में नव-बुध फौरन टाररता है। पिर जो शाल हम बनाते है या जो व्यवम्या दत है वह हमारी होती है । एक आदमी अगर नगा हान पी हिम्मत परे ता उसके अनुयायी उमे नगा न हाने देंगे। अगर वह नगा हो ही जाय तो वे पाई तरकी निकालगे और पीछे रोप पातफर उसे बरावर पर देंगे और कहेंगे कि वह आदमो कभी नगा नही हुना। इसी तरह शानियां पता होती है और मर जाती है। रोज राज प्राप्ति की जारत पह जाती है सगोगा की जमरत पद जाती है जा फिर से आपर पोजा या तोड है। यह यहा दुमाग्यपूण घटना है। रेरिन यही होता रहा है कि ग्रामिारी जितना यहा हागा उमा उतना ही यात्रा लोप पोत लिया जायगा। हम शाद पता नहा कि कान्तिपारी यस राग थ । आन उनका और हो गर उपाय है ना मिय कभी नही रहे होंगे। म पता है कि किसी भी आमन में-- सौए वठे, 2 और राहे--म्यान हो
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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