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________________ नवम अध्याय महावीर की भापा जो सहस्स सहस्साणे, संगामे दुज्जए जिए । एग जिणेज्ज अप्पाण, एस से परमो जत्रो॥ ___ --उत्त० अ० ६, गा०३४ महावीर की भाषा प्राकृत थी, संस्कृत नहीं । वस्तुत सस्कृत कभी भी लोकभापा नही थी । वह सदा से पडितो की-दागंनिको और विचारको की--भापा रही है। महावीर के युग मे प्राकृत ही साधारण जन की भाषा थी। ग्रामीण लोग इसी लोकभाषा का प्रयोग करते थे, कारण कि प्राकृत मलभापा है और उसके परिप्कृत रूप को ही हम सस्कृत कहते है। हमारे देश मे दो परम्पराएं चलती थी। एक परम्परा थी जो सस्कृत मे ही लिखती और सोचती थी। वह बहुत थोडे लोगो की थी । एक प्रतिशत लोगो का भी उसमे हाथ न था। ज्ञान का जो आन्दोलन चलता था वह बहुत थोडे से अभिजातवर्गीय लोगो का था। जनता अनिवार्य रूप से अज्ञान में रहने को वाध्य थी। महावीर और बद्ध-दोनो ने जनभापामो का उपयोग किया। शायद यह भी कारण है कि हिन्दू ग्रन्थो मे महावीर का कोई उल्लेख नहीं है । न उल्लेख होने का कारण है, क्योकि सस्कृत मे उन्होने न तो शास्त्रार्थ किए और न कोई दर्शन विकसित किया । __ आज भी हिन्दुस्तान मे अग्रेजी दो प्रतिशत लोगो की अभिजात भाषा है। हो सकता है कि मैं हिन्दी मे बोलता चला जाऊँ तो दो प्रतिशत लोगो को यह पता ही न चले कि मै भी कुछ बोल रहा हूँ। चूंकि महावीर ने जन्म-मापा का प्रयोग किया, पडितो के वर्ग ने उन्हे बाहर ही रखा। यह बडे आश्चर्य की बात है कि महावीरजैसी प्रतिभा का व्यक्ति पैदा हो और देश की सबसे बडी परम्परा मे, उसके गास्त्र मे, उस समय के लिपिबद्ध ग्रन्थो मे उसका कोई उल्लेख न हो, विरोध मे भी नही । मै इसके बुनियादी कारणो मे एक कारण यह मानता हूँ कि महावीर उस भाषा मे वोल रहे है जो जनता की है । पडितो से शायद उनका वहुत कम सम्पर्क बन पाया। पडितो का अपना एक अभिजात भाव है। वे साधारण जन नही है। वे साधारण १. इसकी अपेक्षा कि पुरुप दुर्जय संग्राम मे दस लाख शत्रुओ पर विजय प्राप्त करे वह अपनी ही आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले। यही श्रेष्ठ विजय है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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