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________________ महावीर परिचय और वाणी १३७ तो निगोद का अर्थ है मूछित आत्माआ का लोप । ससार है जब मूछिन आत्माआ का राव, मोक्ष है परम अमूछिन आत्माआ का लोव । चूमि हमारा मन सल्याआ म हो सोचता है इमरिए निर तर यह सवाल उठता है वि अमूछिन आत्माएँ कितनी है और क्तिी मुक्त हो गई हैं ? यह न भूलें कि आत्माएँ अनत काल से मुक्त हो रही ह आर मनन्त जात्माएँ मुक्त हो चुकी है । मजे की बात तो यह है कि अनत से विनना ही निवारो पीछे मनात ही शेष रह जाता है । गणित की बड़ी पहेलिया म से यह एक है कि अनत से हम कुछ भी निकाले, अनत ही शेप रहता है। इसलिए निगोद आज भी उतने का उतना ही बना रहगा। आत्माएँ मुक्त होती चली जायेंगी, लेकिन माम भीड नहीं बढ़ेगी। मामाय गणित इस रहस्य को सुलझा नहीं सकता। फितु गणित की कई बाते आज गलत सिद्ध हो चुकी हैं। उन्गहरण लिए नयी ज्योमेटी की इस धारणा को लें कि मोची रेया होती ही नहीं। चूकि जमीन गोल है, इसलिए क्तिनी सीधी रेखा क्या न हो यदि तुम उसयो दोना तरफ बताते चले जाओ तो अत म वह वत्त वन जायगी। ममी सीधी दीखनवाली रखाएं वत्त वा हिस्सा हैं और वत्त का हिम्सा सीधा नहीं हो सकता। इसलिए जगत में कोई रेसा सीधी नहीं है। यह भी हमारे खयाल म आना मुश्किल है। साधारण गणित कहता है कि विदु वह है जिसम लम्बाई चौडाइ नहीं है, मगर ज्योमेट्री बहती है कि जिसम लम्बाई चौडाई न हो वह तो हो ही नही मक्ता इसलिए कोई विदु नहीं है-ममी रेखाआ के बड हैं, छोटे खड। रेखा है बडे वत्त वा खड और पिदु है रेषा या खड । सभी विदुओ मरम्बाई-चौडाई होती है। सख्या विलकुल ही झूठी बात है, आदमी की ईजाद है। यहा कोई भी ऐसी चीज नहीं जिसकी मन्या हो । प्रत्येक चीज असत्य है और अगर हम अरास्य का पयाल करें तो गणित बेकार हो जाता है। वह बना है काम चलाऊ हिसाब से सख्या से । इस काम चलाऊ गणित से अगर हम जगत के सत्य का जानने जायग तो हम मुश्किल म पड जायेंगे। महावीर को बात गणित से उरटी है । वस्तुत जो भी सत्य के खोजी हैं उनकी बात गणित से उलटी होगी। इसलिए उपनिपद भी कहती है कि वह पूण ऐसा है कि उमसे अगर तुम पूर्ण को भी बाहर निकाल लो तो पूण हीरोप रह पाता है। उसम जरा भी कमी नहीं पड़ती। हम जब भी कुछ निकाल्त हैं तव पीछे कमी पड़ जाती है क्यानि मा सीमित से ही कुछ निकाला है सदा । अगर हमने असीमित स भी कुछ निकाला होता तो हम पता चलता। अमीमित रा म कुछ भी अनुभव नहीं । १ ॐ पूर्णमद पूर्णमिद पूर्णात पूणमुदच्यते । । पूर्णस्य पूणमादाय पूणमेवावलिप्यते ।। -ईगावास्योपनिषद १
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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