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________________ महावीर परिचय और वाणी १२५ पात, वेतन वा अय है इतना कम जड कि हम उमे अमा गड नहीं पह पाते । वे एक ही चीज के दो छार ह । जडता चेतन हाती चली जा रही है। उसम भीतर प, चेनन छिपा है । पर मिप प्रवद और अप्रकट का है। जिस हम पद कहो है वह अप्रपट चेतन है-जाती जिसकी अभी चेतना प्रस्ट नहीं हुई। जहम हम तन दिसाइ नहीं पड़ता, कारण कि हमारी देखने की क्षमता यहुत सीमित है । पाय चेतन की अप्रक्ट स्थिति है जार चेता पदाथ की प्रस्ट थियी। इसलिए मरी प्टि म भौतिकवाद और अयात्मवान या झगडा अथ नहीं रमता। यह माघ गिगम का झगडा है। पोई यह सपता है कि गिलास आपा साली है और बल गिगम के गाली हाने पर दे सकता है। वही दूसरा व्यक्ति इस बात पर जार ६ सपना? कि गिलास बाधा नरा है। दाही टीम पहते हैं मिप उनका र भित है। एप मारी पर जोर देवर चला है दसरा मरे पर। इमगिए अध्यात्मवाद और पदायवाद में बुनियादी भेट है। भेद सिप इस बात का है कि पदाधवाय बार मी को राम सस्ता है विराग स । अयात्मवाट विवासगीर बना सकता है बादमी पा। जहां पदाथवाट मनप्य यो एपम उदास कर सकता है यहाँ अप्यारमयाद गति देना है विमास मे द्वार पोलता है। दूसरी चास-म पहता हूँ Eि अत नही हो सकता, मत असम्भव है। 7 इसलिए असम्भव है लिविसी चीज-या बन गदा दूमर या प्रारम्भ हाता है। आर प्रारम्मी अवधारणा अमम्मर है क्यापि प्रारम्भ के लिए भी पहले पुध सना में होना चाहिए नहीं तो प्रारम्म हा ही नहा रास्ता । यानी प्रारम्म २ सम्म पनि गे प्रारम्म के पहले अस्तित्व पाहिए। और जब पहले अपि पाहिए तो यह प्रारम्म नहा रह गया । जहाँ युग मत होता है, वही प्रारम्भ होता है मागी प्रत्पर यस प्रारम्ग वो जम देता है और प्रत्पेर प्रारमाबत यो जान देता है। अगर रिमी दिन हमने पता भी गायिा दि इस ति पपीपा प्रारम्भ हुआ तो हम पाएँगे fr उसर पर छपा जिमस प्रारम्भ हुआ। फिर जब उगा पा मारिया ता पता पगापि उमरे भी पहले पुए या जिगस प्रारम्भ हुमा । I प्रारम्मपत्य म TITो सरा और अगर Tप में प्रारम् साता ता पाना गत होगा। उसरा मारय हागा रिवीज मी तरह पुध दिगार हो। पिर पर TT ता। गा तिना नी याराम, पारनपा पारण भाग्भय है। प्रारम्म पनी ? THI, - ___म सबर मा म यर प्ररा र गमता nिf Trn परिमिनियों में महापौर-जगमतियारि गायब
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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