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________________ 29. 30. 31. 32. 41. वही 4 (4)/44 ब्रह्मचर्यस्य त्रयोऽर्थाः भवन्ति- आचारा: मैथुन विरति: गुरुकुलवासश्च। वही 3(1)/4 ब्रह्म- आचार: सत्यं तपश्च। (अ) वही 5(2)/35 ब्रह्मचर्यम् - आत्मरमणं, उपस्थ संयमः, गुरुकुलवासश्च (ब) वही 3(2)47 सूयगडो (1)/6/23, टिप्पण संख्या 83 में उद्धृत वही (1)/1/72, सू (1)/14/1 वही (1)/14/1 के टिप्पण में उद्धृत (अ) चूर्णि पृ. 228, (ब) वृत्ति, पत्र 248 सूयगडो / (2)/5/1; 1/14/1 के टिप्पण में उद्धृत-चूर्णि पृ. 403 (अ) ठाणं 9/2 (ब) समवाओ 9/3 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - स्थानांग वृत्ति, पत्र 282,283 समवाओ 27/1 समवाओ 9/1 के टिप्पण संख्या 3 में उद्धृत - समवायांग वृत्ति पत्र 16 समवाओ 51/1 की टिप्पण संख्या 1 में उद्धृत नायाधम्मकहाओ, टिप्पण संख्या 6.17, पृ. 63 में उद्धृत ज्ञाता वृत्ति, पत्र 8 - "ब्रह्म-ब्रह्मचर्यं सर्वमेव वा कुशलानुष्ठानम्' दसवेआलियं 4/14 (अ) जैन आचार मीमांसा / पृ. 120 पर उद्धृत (ब) निरुक्त कोश, 1116 में उद्धृत - उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. 207 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - षट् प्राभृत द्वादशानुप्रेक्षा, श्लोक 80 ठाणं 10/16 के टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत - तत्त्वार्थ वार्तिक पृष्ठ 595-600 आचारांग और महावीर पृष्ठ 285 में उद्धृत-आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, भाग-2 पृष्ठ 181 सू.टी. 2 पृ. 119 (निरुक्त कोश में उद्धृत) सू.टी. 2 पृ. 119 (निरुक्त कोश में उद्धृत) उत्तराध्ययन चूर्णि पृ/207 (निरुक्त कोश में उद्धृत) अणु से पूर्ण की यात्रा, पृष्ठ 323 ब्रह्मचर्य विज्ञान पृष्ठ 137 ब्रह्मचर्य विज्ञान पृष्ठ 137 संस्कृत हिन्दी कोश पृष्ठ 723 53. 38
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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