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________________ निरूपित किया। मध्यवर्ती बाइस तीर्थंकरों के मुनि ऋजुप्राज्ञ (सरल और मेधावी) होते हैं। इनके लिए विस्तार अपेक्षित नहीं होता। इसलिए उन्होंने चार याम का उपदेश दिया। उनमें ब्रह्मचर्य नाम से कोई याम नहीं होता है। उनका चौथा याम बहिद्धादान है। उसमें स्त्री और परिग्रह दोनों का समावेश होता है। इस प्रकार वे चार यामों में पाँचों ही महाव्रतों का पालन करते थे। अन्तिम तीर्थंकर के मुनि वक्रजड़ ( अत्यन्त वक्र व हर बात में गली (अपवाद) निकालने में निपुण) होते हैं संघ के परिष्कार, परिवर्द्धन और संवर्धन के लिए महावीर ने अनेक नई स्थापनाएं की। उस समय अब्रह्मचर्य की वृत्ति को प्रश्रय देने के लिए जिन कुतकों का प्रयोग किया जाता था उनका उन्मूलन करने के लिए भगवान महावीर ने बहिद्धादान - विरमण महाव्रत का विस्तार कर ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन दो स्वतंत्र महाव्रतों की स्थापना की। 72 2.7 ब्रह्मचर्य की तात्विक मीमांसा किसी भी विषय की सूक्ष्म गहराई में जाकर इसे समझने में उसकी तात्त्विक मीमांसा बहुत सहायक होती है। आगमेत्तर साहित्य में इस विद्या का प्रचुर प्रयोग किया गया है। मुनिश्री सुमेरमलजी 'लाडनूं' ने 'अवबोध' में ब्रह्मचर्य की संक्षिप्त तात्त्विक मीमांसा इस प्रकार की है। 73 1. ब्रह्मचर्य अणुव्रत रूप का पालन हो । भाव कितने ? भाव दो - क्षायोपशमिक, पारिणामिक । आत्मा कितनी ? आत्मा दो योग व देशचारित्र । - 2.8 2. संयम युक्त महाव्रत रूप ब्रह्मचर्य का पालन भाव कितने ? भाव चार (उदय को छोड़कर) आत्मा कितनी ? आत्मा एक - चारित्र । 3. ब्रह्मचर्य का पालन सावद्य या निरवद्य ? निरवद्य, भगवान की आज्ञा में है। भले ही उसका पालन मिथ्यात्वी ही क्यों न करता गाँधीजी की दृष्टि में ब्रह्मचर्य महात्मा गाँधी ब्रह्मचर्य के उत्कृष्ट साधक रहे हैं। उनके साहित्य में उनका ब्रह्मचर्य दर्शन अलग ही महत्त्व रखता है। महात्मा गाँधी कहते हैं - ब्रह्मचर्य का अर्थ है समस्त इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण और मन, वचन और कृत्य द्वारा लोलुपता से मुक्ति । 74 ब्रह्मचर्य के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं - ब्रह्मचर्य यानि ब्रह्म की, सत्य की शोध में चर्या अर्थात् तत्संबंधी आचार केवल जननेन्द्रिय संबंधी अधूरे अर्थ को तो हमें भूल ही जाना चाहिए। गाँधीवाद की दृष्टि में स्वपत्नी संतोष भी ब्रह्मचर्य ही है, क्योंकि विवाह और गृहस्थाश्रम 13 75
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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