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________________ अथवा ज्ञान रूप वेद "ब्रह्म" है। ऐसे "ब्रह्म' की प्राप्ति के उद्देश्य से व्रत ग्रहण करना ब्रह्मचर्य है। 4. तत्त्वार्थ सूत्र - "अहिंसादयोगुणा यस्मिन परिपाल्यमाने बृंहन्ति वृद्धिमुयन्ति तद्ब्र ह्म।"63 जिसके पालन करने पर अहिंसादि गुण बढ़ते हैं, वह "ब्रह्म' है। "ब्रह्म'' में विचरण करना ब्रह्मचर्य है। 5. धवला - "ब्रह्म चारित्रं पंच व्रत समिति गुप्त्यात्मकम् शान्ति पुष्टि हेतुत्वात्।" 64 अर्थात्, पांच महाव्रत, पांच समिति एवं तीन गुप्ति रूप चारित्र ; क्योंकि वह शान्ति और पुष्टि (आत्म गुणों की) का कारण है। उक्त ब्रह्म में रमण करना ब्रह्मचर्य है। 6. धर्मामृत अणगार - या ब्रह्मणी स्वात्मनि शुद्ध बुद्धे चर्या परद्रव्यमुच: प्रवृत्तिः। तद् ब्रह्मचर्यं व्रत सार्वभौमं ये पान्ति ते यान्ति परं प्रमोदम्।। ७ पर द्रव्यों से रहित शुद्ध-बुद्ध अपनी आत्मा में जो चर्या अर्थात् लीनता होती है, उसे ही ब्रह्मचर्य कहते हैं। व्रतों में सर्वश्रेष्ठ इस ब्रह्मचर्य व्रत का जो पालन करते हैं वे अतीन्द्रिय आनंद को प्राप्त करते हैं। 7. जैन सिद्धान्त दीपिका - सर्वथा हिंसाऽनृतस्तेयाऽब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिर्महाव्रतम्।। हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह इनको सर्वथा त्यागने का नाम महाव्रत सर्वथा त्यागने का अर्थ है कि हिंसा आदि का आचरण तीन करण, तीन योग से स्वयं न करना, दूसरों से न कराना, करते हुए का अनुमोदन न करना, मन से, वाणी से और शरीर से इस प्रकार त्याग करने का नाम महाव्रत है। इस प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ ब्रह्म में निष्ठ होना, ब्रह्माचरण करना, मैथुन का सर्वथा परित्याग करना, पूर्ण शील में प्रतिष्ठित होना, मन-वचन-कर्म कहीं से, किसी प्रकार से मैथुन के प्रति सर्वथा स्खलित न होना ब्रह्मचर्य है। वीर्य संरक्षण, आध्यात्मिक उन्नति और आत्मप्रकाश की लब्धि "ब्रह्मचर्य" शब्द के वाच्यार्थ हैं। 2.5 ब्रह्मचर्य और अन्य व्रतों का संबंध प्रश्नव्याकरण सूत्र के अनुसार ब्रह्मचर्य और अन्य व्रतों में आधार और आधारी का संबंध है। क्योंकि शेष चार व्रत ब्रह्मचर्य पर ही टिके हुए हैं। इस तथ्य का स्पष्टीकरण सूत्रकार ने अनेक उपमाओं से किया है। सूत्रकार के ही शब्दों में - इसके भग्न होने पर सहसा - विनय,
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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