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________________ ब्राह्मण - यथार्थ नाम वाला, उत्तम श्रमण - सच्चा तपस्वी, उत्तम साधु - वास्तविक निर्वाण साधक, श्रेष्ठ ऋषि अर्थात् यथार्थ तत्त्वदृष्टा, उत्कृष्ट मुनि - तत्त्व का वास्तविक मनन करने वाला, वही संयत - संयमवान और वही सच्चा भिक्षु - निर्दोष भिक्षा जीवी है। " साधना की इन पर्यायों का आधार ब्रह्मचर्य को बताते हुए यहां ब्रह्मचर्य को शुद्ध, न्याययुक्त, कुटिलता से रहित, सर्वोत्तम और दु:खों और पापों को उपशान्त करने वाला बताया गया है।' दसवैकालिक सूत्र में श्रामण्य की प्रथम कसौटी ब्रह्मचर्य को माना गया है। सूत्रकार कहते हैं श्रामण्य के समाधिपूर्वक पालन के लिए ब्रह्मचर्य प्रथमावश्यक है कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए। पए पए विसीयंतों, संकप्पस्स वसं गओ।। " इसी सूत्र में ब्रह्मचर्य का महत्त्व इससे भी प्रमाणित होता है कि इसमें सूत्रकार ने राजीमती के मुख से यह कहा है कि ब्रह्मचर्य भंगकर जीने से तो मृत्यु श्रेयस्कर है। 20 उत्तराध्ययन सूत्र में ब्रह्मचर्य को यज्ञों में महायज्ञ कहा गया है। इसे बहुत ही दुष्कर बताते हुए कहा गया है कि जो स्त्री विषयक आसक्तियों का पार पा जाता है, उसके लिए शेष सारी आसक्तियां वैसे ही सुतर हो जाती है जैसे महासागर को पार करने वाले के लिए गंगा नदी। यहाँ ब्रह्मचर्य को धर्म, ध्रुव, नित्य, शाश्वत और अर्हत् द्वारा उपदिष्ट बताते हुए यह कहा गया है कि जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है उसे देव, दानव, गन्धर्व, राक्षस और किन्नर ये सभी नमस्कार करते हैं। 24 धर्मामृत अनगार में ब्रह्मचर्य की महिमा बताते हुए कहा गया है कि यह व्रत समस्त व्रतों में सार्वभौम के समान है तथा जो पुरुष इसका पालन करते हैं वे ही सर्वोत्कृष्ट आनन्द - मोक्ष सुख को प्राप्त किया करते हैं। स्याद्वाद मञ्जरी में ब्रह्मचर्य की महिमा में एक सुन्दर श्लोक उद्धृत किया गया है - एकरात्रौषितस्यापि या गतिर्ब्रह्मचारिणः । न सा ऋतुसहस्रेण प्राप्तुं शक्या युधिष्ठिरः ।। हे युधिष्ठिर! एक रात ब्रह्मचर्य से रहने वाले पुरुष को जो उत्तम गति मिलती है, वह गति हजारों यज्ञ करने से भी नहीं होगी। वैदिक ऋषियों की दृष्टि में भी ब्रह्मचर्य का कितना ऊंचा स्थान है यह उनके इन शब्दों से दर्शित होता है - व्रतानां ब्रह्मचर्यं हि, निर्दिष्टं गुरूकं व्रतम् । तज्जन्यपुण्यसम्भार - संयोगाद् गुरु रुच्यते।। एकतश्चतुरो वेदा:, ब्रह्मचर्य च एकतः। 6
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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