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________________ अनुप्रेक्षा के प्रकार- अनुप्रेक्षा के बारह प्रकार का उल्लेख मिलता हैं - (1) अनित्य (2) अशरण (3) भव (4) एकत्व (5) अन्यत्व (6) अशौच (7) आश्रव (8) संवर (9) निर्जरा (10) धर्म (11) लोक संस्थान (12) बोधि-दुर्लभता इनके अतिरिक्त चार भावनाएं और हैं - (1) मैत्री (2) प्रमोद (3) करुणा (4) माध्यस्थ 3.10.1 अनित्य भावना - भोग्य पदार्थ और भोगी दोनों ही अनित्य हैं - नष्ट हो जाने वाले हैं। मूर्छा के कारण व्यक्ति स्वयं को अमर मान लेता है और काम भोगों को शाश्वत। इस मूर्छा को तोड़ने का साधन है- अनित्य अनुप्रेक्षा। आचारांग सूत्र के भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार अभ्यास के बिना अप्रमाद की साधना और प्रमाद का परिहार नहीं किया जा सकता। इसके तीन आलम्बन हैं - शांति, मरण व अनित्य अनुप्रेक्षा। 10 इसी ग्रंथ में बताया गया है कि विषयासक्ति को त्यागने के लिए आत्मरमण आवश्यक है। आत्मा ही शाश्वत एवं सदा हितकारी होने के कारण सारभूत है। सभी विषय अनित्य होने के कारण निस्सार हैं। इस प्रकार विषयों की अनित्यता की अनुप्रेक्षा का अभ्यास आत्म रमण का साधन हैं। 106 सूत्रकृतांग सूत्र में जीवन की अनित्यता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सौ वर्ष जीने वाला मनुष्य तारुण्य में ही मर जाता है। फिर भी आसक्ति के कारण स्त्री आदि में मनुष्य मूर्च्छित होता है। 107 दसवैकालिक सूत्र में 'जीवन' और 'भोग्य पदार्थ' (शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श) दोनों को ही अनित्य कहा गया हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में शरीर को पानी के बुलबुले की तरह अशाश्वत कहा गया है। इतना ही नहीं, यह शरीर व्याधि और रोगों का घर है, जरा और मृत्यु से ग्रस्त है। शरीर, भूमि, घर, धन-धान्य, बन्धु बांधव को भी एक दिन छोड़कर जाना है। १० 3.10.2. अशरण भावना - इन्द्रिय विषय लोभ को प्रेरित करते हैं, लोभ वश मनुष्य अर्थार्जन और पारिवारिक ममत्व बढ़ाता है। अर्थ का अर्जन और ममत्त्व की प्रगाढ़ता होने पर भी कोई त्राण या शरण नहीं होता। आचारांग सूत्र के अनुसार स्वयं अर्जित कर्म जब उदय में आते हैं तब उसे न धन बचा पाता है और न ही परिवार के सदस्य।" इसी सूत्र में कहा गया है- 'जाणितु दुक्खं पतेयं सायं' अर्थात् अर्थार्जन और काम के आसेवन से उपार्जित दुःख अपना होता है- करने वाले का ही 181
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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