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________________ 91 वैयावृत्य आदि के श्रम में व्यस्त साधक के काम संकल्प उत्पन्न नहीं होते हैं। व्यवहार भाष्य में काम चिकित्सा की विधि में शिष्य को वैयावृत्य में नियोजित करने " धर्मामृत अनगार में ब्रह्मचर्य व्रत में रुकावट से बचाव के लिए वृद्ध 93 का विधान किया गया है। सेवा का मार्ग सुझाया गया है " भगवती आराधना में वृद्ध शब्द का व्यापक अर्थ करते हुए वृद्ध सेवा का उपदेश है। सूत्रकार कहते हैं- 'अवस्था में वृद्ध हो अथवा तरुण हो, जिसके शील क्षमा, आर्जव आदि गुण बढ़े हुए हैं, वे वृद्ध हैं।' वृद्ध सेवा का महत्त्व बताते हुए सूत्रकार कहते हैं- जैसे कतकफल डालने से गंदला पानी भी निर्मल हो जाता है, वैसे ही वृद्ध पुरुषों की सेवा से कलुषित मोह भी शान्त हो जाता है। * 95 3.10 स्वाध्याय स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ होता है- पढ़ना । किन्तु साधना के क्षेत्र में केवल पढ़ना स्वाध्याय नहीं है वरन् आत्म विकास के विषय में आत्मा को जानना, विचार करना, मनन करना स्वाध्याय है। 96 आवश्यक चूर्णि के अनुसार सामायिक से द्वादशांग पर्यंत आगमों का परिशीलन करना स्वाध्याय है। " उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य वृत्ति में प्रवचन का अर्थ श्रुत किया गया है। वहाँ श्रुत धर्म के आचरण करने को स्वाध्याय माना गया है। ' 97 98 (i) स्वाध्याय का महत्त्व - ब्रह्मचर्य साधक के लिए स्वाध्याय एक पुष्टी कारक औषध के समान है। आचारांग में ब्रह्मचारी को सूत्र और अर्थ में लीन रहने का निर्देश है। " दसवैकालिक सूत्र में स्वाध्याय का महत्त्व व उद्देश्य इस प्रकार कहा है (1) स्वाध्याय से ब्रह्मचर्य साधना के उद्देश्य, उपलब्धियां, साधना के प्रयोग आदि बोध (श्रुत) प्राप्त होता है। (2) ब्रह्मचर्य साधना के लिए चित्त की एकाग्रता परम आवश्यक है क्योंकि चंचल चित्त साधना में बाधक होता है। स्वाध्याय से चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है। (3) साधना की सम्यक् विधि का ज्ञान और उसमें एकाग्रता पा लेने से साधक धर्म (ब्रह्मचर्य) में स्थिर हो जाता है। (4) स्वयं स्थितात्मा बना हुआ साधक दूसरों को भी साधना मार्ग स्वीकार करने की प्रेरणा देने की अर्हता प्राप्त करता है। 99 (ii) स्वाध्याय के प्रकार - उत्तराध्ययन सूत्र में स्वाध्याय के पांच प्रकार बताए 100 गए हैं। शान्त्याचार्य ने उनकी अर्थ विवेचना इस प्रकार की है - (1) वाचना - अध्यापन करना । 179
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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