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________________ विकास के लिए यत्र-तत्र आगमों में प्रस्तुत सामग्री को इन्हीं चार आयामों के अन्तर्गत क्रमबद्ध प्रस्तुत किया जा रहा है। 2.1. ज्ञान जीवन में ज्ञान का बहुत बड़ा महत्त्व है। कहा भी गया है - 'अज्ञानं खलु कष्टं'। इसलिए साधना के मार्ग में ज्ञान प्रथम अपेक्षा है। चूंकि ब्रह्मचर्य एक दुस्तर साधना है इसलिए जैन आगमों में इस संबंध में ज्ञान का महत्त्व अनेक स्थानों पर प्रतिपादित किया गया है। ___ आचारांग सूत्र में मानसिक संताप और दरिद्रता का कारण काम विकार को माना है तथा इस कष्ट से मुक्ति का उपाय विद्या अर्थात् ज्ञान को बताया गया है। सूत्रकृतांग सूत्र में भगवान ऋषभ अपने पुत्र को संबोधि को प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। संबोधि (ज्ञान) साधना का प्रथम आयाम है। इससे ही साधना का पथ प्रशस्त होता है। विरति व अविरति के भेद को जाने बिना कामभोग के प्रति आसक्ति को छोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए ब्रह्मचर्य की दृढ़ता के लिए अब्रह्मचर्यवास के कारण होने वाले विभिन्न दुःख को जानने की बात कही गई है। स्थानांग सूत्र में भी सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यवास का माध्यम आरंभ और परिग्रह को जानना और छोड़ना माना है। इसके बिना ब्रह्मचर्य का विकास असम्भव कहा गया है। दसवैकालिक सूत्र में आचार से पहले ज्ञान की अनिवार्यता को बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है। सूत्रकार कहते हैं पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठई सव्व संजए। अन्नाणी किं काही, किं वा नाहिइ छेय-पावगं।। अर्थात् पहले ज्ञान फिर दया (आचार)। इस प्रकार सब मुनि स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा? वह क्या जानेगा क्या श्रेय है और क्या पाप? इस सूत्र में केवल शास्त्रीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि इन्द्रियों के वशीभूत पुद्गलों के परिणमन का यथार्थ ज्ञान करने का भी निर्देश है।" उत्तराध्ययन सूत्र में भी ब्रह्मचर्य विकास के लिए उन तत्त्व को जानना आवश्यक बताया गया है जो ब्रह्मचर्य के लिए घातक होते हैं।' आवश्यक सूत्र में भी ब्रह्मचर्य के स्वीकरण एवं अब्रह्मचर्य के प्रत्याख्यान से पूर्व अब्रह्मचर्य को ज्ञपरिज्ञा से जानने का संकल्प कराया गया है।" ज्ञानार्णव में काममार्ग के विषय में स्पष्टतया विरक्ति का साधन आगम ज्ञान को माना है।" सूत्रकार के अनुसार जिस काम देव को ज्ञानियों की संगति, तप और ध्यान से भी नहीं जीता जाता वह केवल शरीर (पर) और आत्मा (स्व) के भेद ज्ञान से उत्पन्न हुए वैराग्य के प्रभाव 167
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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