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________________ से होने वाला सशब्द हास्य किया गया है। जिनदास गणि ने इसका अर्थ अट्टहास किया है। आयुर्वेद के संदर्भ में इसे देखने पर इसका ब्रह्मचर्य सुरक्षा से गहरा संबंध प्रतीत होता है। सुश्रुत संहिता में अति प्रसन्नता - अट्टहास पूर्ण हंसी को शुक्र की प्रवृत्ति का एक कारण माना गया है। 2.19 निमित्तों से बचाव ब्रह्मचर्य साधना पर बाहरी निमित्तों का अनुकूल व प्रतिकूल दोनों ही प्रभाव पड़ता है। इसी दृष्टि से जैन आगमों में अनेक स्थलों पर ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए नवबाड़ और एक कोट का उल्लेख मिलता है। ब्रह्मचर्य के परिरक्षण हेतु विकारोत्पादक निमित्तों से, चाहे वे कितने ही छोटे क्यों न हों, बचाव करना परमावश्यक है। बृहत्कल्प सूत्र, जो कि मुनि के लिए विधि एवं निषेधों की आचार संहिता हैं, में विकारोत्पादक निमित्तों से बचाव करने के लिए अति सूक्ष्म दृष्टि से विवेचन किया गया है - • कुछ खाद्य पदार्थों का आकार विशेष स्त्रियों के लिए विकारोत्पादक हो सकता हैं, जैसे - भिंडी, मिर्ची, बैंगन, भुट्टे, शकरकंद, करेला, केला आदि। इसलिए साध्वियों को ये अखण्ड रूप में लेना नहीं कल्पता हैं। यदि इनके छोटे-छोटे टुकड़े किए गए हों तो वे ले सकते हैं।१० • ब्रह्मचर्य सुरक्षा में साधकों के प्रवास स्थल का बहत बड़ा महत्त्व है। जहां परस्पर मिलने आदि के प्रसंग की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है, वहां रागात्मक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिए निवास संबंधी निर्देश इस प्रकार हैं - किसी ऐसे गांव यावत् राजधानी में, जो एक ही प्राकार से घिरा हो या विभाजित हो या जिसके एक ही द्वार हो या निर्गमन या आगमन का एक ही मार्ग हो, साधु-साध्वियों को एक समय में - एक साथ वहां प्रवास करना नहीं कल्पता हैं।" • किसी ऐसे ग्राम यावत् राजधानी में, जो अनेक प्राकारों, अनेक द्वारों या अनेक निर्गमन-आगमन मार्गों से युक्त हो, साधु-साध्वियों को वहां एक समय में प्रवास करना कल्पता है।18 ' इसके अतिरिक्त ऐसे स्थान जहां अनेक अपरिचित लोगों का आवागमन हो वहां" तथा खुले (कपाट रहित) स्थान में साध्वियों का प्रवास करना नहीं कल्पता हैं। • साधु-साध्वियों को परस्पर एक दूसरे के स्थान पर भी जाने तथा वहां विविध कार्य करने के संदर्भ में भी बृहत्कल्प सूत्र यह कहता है कि वहां जाना और रहना नहीं कल्पता है। निशीथ एवं बृहत्कल्प दोनों में इसका प्रायश्चित्त गुरु चौमासी बताया गया है। 222 148
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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