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________________ वीर्य रक्षा का माध्यम है - ब्रह्मचर्य। इस प्रकार स्वास्थ्य का मूल आधार ब्रह्मचर्य माना गया है। पातंजल योग दर्शन के अनुसार ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा होने पर वीर्य का लाभ होता है। योग सूत्र में इसका विस्तार इस प्रकार किया गया है - चिरायुषः सुसंस्थाना - दृढ़संहनना नराः । तेजस्विनो महावीर्या भवेयुर्ब्रह्मचर्यत: ।। अर्थात् ब्रह्मचर्य के प्रभाव से प्राणी - दीर्घ आयु वाला, सुंदर आकार वाला, दृढ़ शरीर वाला, तेजस्वी और अतिशय बलवान होता है। 1.2. मानसिक लाभ ब्रह्मचर्य के पालन से मानसिक लाभ भी उपलब्ध होता है। मानसिक शान्ति भौतिक उपलब्धियों से भी अधिक मूल्यवान होती है। 1.2(1) मानसिक स्थिरता - प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य से मानसिक स्थिरता की बात कही गई है।" इसके अनुसार ब्रह्मचर्य के पालन से साधकों का अंत:करण प्रशस्त, गम्भीर और स्थिर हो जाता है। उत्तराध्ययन सूत्र में मानसिक अस्थिरता का कारण विषयासक्ति बताते हुए कहा गया है कि ब्रह्मचारी के काम-गुणों में होने वाली तृष्णा प्रक्षीण हो जाती है, संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाते हैं। फलत: मानसिक स्थिरता की उपलब्धि होती है। 1.2(2) मानसिक स्वास्थ्य - ब्रह्मचर्य और मानसिक स्वास्थ्य का बहुत गहरा संबंध है। संबोधि में आचार्य महाप्रज्ञ ने मानसिक स्वास्थ्य के कुछ सूत्र दिए हैं जो ब्रह्मचर्य के ही अंग हैं। वे सूत्र इस प्रकार हैं - * मनोज्ञ और अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष नहीं करना।" * भौतिक फलों की आशा और भोग विषयक संकल्पों का त्याग। 20 * भोगों की रक्षा का प्रयत्न न करना। 1.2(3) सद्गुणों का प्रेरक - प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को गुणों का अद्वितीय नायक कहा गया है। जिस प्रकार नायक के आने पर पूरी सेना उसके साथ आ जाती है उसी प्रकार ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर अन्य सभी सदगुण स्वयं आ जाते हैं। 22 1.3. भावात्मक लाभ ब्रह्मचर्य का भावनाओं से बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। ब्रह्मचर्य साधना से भावात्मक लाभ इस प्रकार हैं1.3(1) शुभ लेश्याओं की परिणति - उत्तराध्ययन सूत्र में लेश्याओं का विस्तृत वर्णन 84
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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