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________________ समीक्षा - पृष्ठ २३) क्षुल्लक सिद्धसागर को (आचार्य शान्तिसागर) महाराज ने कहा था -रल मोटर से मत जाना । इस आदेश के प्रकाश में उच्च त्यागी अपना कल्याण सोच सकते हैं, कर्तव्य जान सकते हैं । (चारित्र चक्रवर्ती - पृष्ठ ३६०) ___आ. वीरसागर मुनिराज के जीवन की मार्गदर्शक घटना है - एक दिन सम्मेदशिखर की यात्रा में जाते समय उनको १०४ डिगरी बुखार आ गया । बहुत जोर से ठंड लग रही थी, शरीर कांप रहा था । संघ के लोगों ने डोली में बिठाकर ले जाने का प्रयास किया । परन्तु महाराज ने डोली का स्पर्श तक नहीं किया । इतने अधिक बुखार में भी पैदल १२ मील जाकर रूके । (गणिनी ज्ञानमती गौरव ग्रंथ - पृष्ठ २/७०) इसी प्रकार महातपोमार्तण्ड आ. श्री. सन्मतिसागर स्वामी की वृद्धावस्था (७२ वें वर्ष) का बोधप्रद प्रसंग है - १५ अप्रैल २००९ के प्रातः जब शिरहट्टी के श्रावक अपने गाँव पधारने हेतु बारंबार निवेदन करने लगे तो गुरुवर अपने आसन से खड़े हुए, किन्तु उन्हें कदम रखने में कठिनाई हो रही थी । जब उनका चलने में संतुलन बिगड़ने लगा तो उनको निवेदन किया गया कि गुरुवर ! हमारे आग्रह को स्वीकार कर डोली में बैठ जाइए। गुरुजी बोले - नहीं, यह नहीं होगा। ... मैं कभी भी डोली में नहीं बैलूंगा। जब तक जंघाबल है तब तक ही मेरा जीवन है । जिस दिन जंघाबल समाप्त हो जाएगा, मैं चल नहीं सकूँगा, उस दिन यह तन छोड़ दूंगा। ... बहुत जरूरी हुआ तो किसी के हाथ का सहारा ले सकता हूँ, जड़ या चेतन वाहन का प्रयोग बिल्कुल नहीं । (अनूठा तपस्वी - पृष्ठ ३७३ वच्चदि णरयं पाओ करमाणो लिंगिरूवेण ।।लिंगपाहड-९।। अर्थात्- जो मुनि का लिंग रखकर भी दूसरों के 'विवाह सम्बन्ध' जोड़ता है तथा खेती और व्यापार के द्वारा जीवों का पात करता है वह कि मुनिलिंग के द्वारा इस कुकृत्य को करता है अतः पापी है और नरक जाता है। (पृष्ठ ६८६) तत्त्वार्थसूत्र में ब्रह्मचर्यव्रत के अतिचारों में पहला ही अतिचार परविवाहकरण कहा है। (७/२८) अत: ब्रह्मचर्यव्रत का धारी श्रावक भी अपने आश्रित पुत्र-कन्याओं को छोड़कर दूसरों के विवाह सम्बन्ध नहीं जोड़ता है। तब जो उससे अत्यंत श्रेष्ठ तथा कृत-कारित-अनुमोदना से अब्रह्म के त्यागी हैं ऐसे मनिआर्यिका-ऐलक-क्षुल्लक-क्षुल्लिका आदि त्यागी दूसरों के विवाह कराने अथवा करवाने जैसा अपने व्रत को नष्ट करने वाला जघन्य कार्य कैसे कर सकते हैं? मुनि भी दीक्षा दे सकते हैं । प्रश्न - क्या मुनि भी दीक्षा दे सकते हैं ? समाधान - हाँ। मुनि भी दूसरों को मनिदीक्षा दे सकते हैं। मनि प्रशान्तसागर द्वारा लिखित जिनसरस्वती नामक पुस्तक में ऐसा प्रश्न उठाकर उसका निम्न प्रकार से समाधान किया गया है। यथा - प्रश्न ९ -कितने परमेष्ठी दीक्षा देते हैं ? उत्तर - तीन परमेष्ठी । आचार्य, उपाध्याय, साधु । (पृष्ठ १००) तथाप्रश्न १८- आचार्यश्री (विद्यासागर) ने कौनसे परमेष्ठी से मुनिदीक्षा ली थी? उत्तर - साधु परमेष्ठी से । (पृष्ठ ५८) शास्त्रों में भी मुनियों के द्वारा दीक्षा दिये जाने के अनेक उल्लेख मिलते हैं। जैसे वारिषेण मुनि ने अपने मित्र पुष्पड़ाल को मुनिदीक्षा दी थी। * * * * * संसारार्णव दुस्तरोऽस्ति निचितैः कमैं: पुरा प्राणिना शक्यं नास्त्यपि पारगम्य इति वै भारेण भूत्वा गुरुम् । ३७४) विवाह प्रश्न - विवाहयोग्य युवक-युवतियों के विवाह सम्बन्ध जोड़ना यह तो बहुत बड़ी समाजसेवा है। क्या साधू यह कार्य भी नहीं कर सकते? समाधान - अष्टपाड में कहा है - जो जोडेदि विवाहं किसिकम्मवणिजजीवघादं च । - कड़वे सच ..................- ९३ - - कड़वे सच ... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ९४ --
SR No.009960
Book TitleKadve Such
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvandyasagar
PublisherAtmanandi Granthalaya
Publication Year
Total Pages91
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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