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________________ ज्वाळमानी कल्प दशम परिच्छेद । । १५७ युक्त यथा । संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाचिक. चलिका, पैशाचिक, अपभ्रंश । संस्कृतनमो महासेन नरेन्द्र तनुज, जगद् जन लोचन मुंग सरोज । शरद्भव सोम सम द्युति काय, दया मय तुभ्यमनंत सुखाय ॥१ सुखी कृतु सादर सेवक लक्ष, विनिर्जित दुर्जय भाव विपक्ष । सुरासुर बंद नमस्कृत नंद, महोदय कल्प महीकर कंद ॥२॥ प्राकृत - सुरा सुरेन्द्र सहिता, श्री पांडव नृप स्तुतः -श्री चंद्रप्रभु तीर्थेशः, श्रियो चंद्रो ज्वलां कुरुः ॥४॥ श्री चंद्रप्रभु विद्येयं, स्मृता सद्य फल प्रदा। भवाब्धि व्याधि विध्वंसी, दायिनी मे वर प्रदा॥५॥ इन मंत्र रूप चंद्रप्रभ त्रं ममाप्तम् । विधि पूर्वक ए मंत्र साधे, ज्वालामालिनी स्तोत्र नित्य पढे, सर्व कार्य सिद्धि कारक मंत्रोयम् । श्री चंद्रप्रभु स्वामी स्तवनम् देवैः स्तुष्टुवे तुष्टैः, सोम लांछित विग्रहः, दद्याच्चंद्रप्रभः प्रीतिः, सोम लांछित विग्रहः ॥१॥ येषा पूजा विधिः कर्मा, जनहत्कमलालयः, तेजिनाः पातुवो भव्य, जनहृत्कमलालयः ॥२॥ कुतीथिं सार्थेन दुरा, सदं भोग्या निरंजनः, श्रुतं सेवेत मोहाग्नि, सदं भो ज्ञानि रंजनः ॥३॥ पीतु गीर्वाः कृत्वा विद्यो, परमा कमलासना, यत्प्रभोवा जनै लै भे, परमा कमलासना ॥४॥ इति श्री चंदामु स्वामी सवनम् अथ श्री चन्द्रप्रभ स्वामी स्तवनम् मौक्तिक दामादि वृत बद्ध षट भाषा रचना चमस्कृति जयनिरसिय तिहुयण जं तुभंति, जय मोह महीकह बन नन्दंति । जय कु'द कलिय समदंत यंति, जय जय चंद्र प्यह बंद कति ॥३॥ जय पणय पाणि गण कृप्यरूरक, जय जगडिय अपयड कसय परक । जथ णिम्मल केवल नाण गेह, जय जय जिणिंद अप्पडि मदेह ॥४॥ शौच सेनोविगद दुह देहु मोहारि केदय, दलिद गुरु दुरिद मध विहिद कुमुद क्खयं । नावतं नमदिजो सदट नद वत्सलं, लहदि निश्चदि गदि सोददं णिम्मलं ॥५॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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