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________________ सामानों कप। दशम परिच्छेद । (१५१ ॐ ह्रीं क्रों कल्ब्यू हंस वर्षे सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन समेते सपरिवारे महालक्ष्मि मम संहिता भव२ वषट् ।। सन्निधिकरणम् । ॐ ह्रीं क्रों कन्व्यू हंस वर्णे सर्व लक्षण संपूर्णे स्वायुध वाहन समेते सपरिवारे हे महालक्ष्मि इदमयं गंधमक्ष पुष्प दीपं च फलं बलिं गृह्ण२ स्वाहाविसर्जनम् । बालेको वह माता ज्वालामालिनीदेवी पास आकर संपूर्ण शुभ और अशुभ फलको कहती है ॥३॥ मंत्र जप होम नियम ध्यान विधि मा करोतु सन्मंत्री। यद्यप्यत्र समुकं तथापि सन्मंत्र साधनं त जहातु ॥ ४ ॥ अर्थ---यद्यपि अग्नि एक होती है। तथापि उसको हवासे क्यों न उबका जावे। उसी प्रकार यद्यपि मंत्र एक ही होता है। तब भी जप और हवनसे युक्त होने पर उसके लिये क्या असाध्य है। शिष्यको विद्या देनेकी विधि शान्यक्षतर्मन्डलमाविलिरव्य, विहस्तमानं चतु रस्र कं तव । जिनेन्द्रबिंब शिखिदेवतायाः, सुवर्णपादौ च निवेश्य तत्र ॥५॥ अर्थ-सांठीके चांवलोंसे दो हाथ लंबा चौडा चौकार मंडल बनाकर उसमें जिनेन्द्र भगवानकी प्रतिमा और ज्वालामालिनी देवीके चरणोंकी स्थापना करे ॥ ५॥ अष्टोत्तर शतपूर्ण रटोतर, शतक भक्ष दीपायैः। जिन शिखि देवी पदयोः, पूजा गुरु भक्तितः कार्या ॥६॥ - । इति ब्राह्मादि अष्ट देवनानां पंचोपचार कमः। ज्वालिन्या सन्निधौ देव्या। मूल विद्यामिमा सुधीः । लक्षमेकं जपेत्पुष्पै। संवृतैररुण प्रभः ॥ १॥ अर्थ-बुद्धिमान पुरुष ज्वालामालिनिदेवीके सन्मुख मल मंत्रका लाल पुष्पोंसे एक लाख जप करे ॥१॥ तनिष्टान निशायां हिम ककुम लघु पुरादिभि ,व्यैः। रचिताभि गलिकाभिः जुयाद युतं यथा विहितं ॥२॥ अर्थ-फिर रात्रिके समय हिम (चंदन), कुकुम (केशर) लघुपुरा (शुद्ध गूगल) आदि द्रव्यों की गोली बनाकर उनसे । दश सहस्र हवन करे ॥ २॥ अम्बादेवी सन्निहिता शुभमशुभं यथा फलं निखिलं। संपादये दभिमतं साधन विधि संग्रहीत विद्यस्य ॥३॥ अर्थ-इस प्रकार इस साधन विधिसे विद्या सिद्ध करने AP अर्थ-फिर उन भगवान और देवीके चरणोंकी एकसौ आठ सुपारी और एकसौ आठ नैवेद्य दीप आदिसे गुरुमें भक्ति लगाकर पूजा करे ॥६॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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