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________________ R५० पालामा उनो कल्प। दशम परिच्छेद। । १४१ आकर्षण यन्त्र प्रातमस्तक सनिवेशित करो नित्यं पवेद्यः पुमान् श्रीसौभाग्य मनोभि वांच्छित फलं प्रामोत्य सौ लीलया ॥९॥ ॥ इति श्री ज्वालामालिनी देवो सोत्र विधान ।। अर्थ-यह पंडित मल्लिषेणका बनाया हुआ ज्वालामालिनीदेवीका स्तोत्र शांति करता है। भयको दूर करता है। सौभाग्य और संपत्तिको उस पुरुषके लिये करता है जो इसका प्रातःकालके समय, प्रतिदिन सिर पर हाथ जोडकर पाठ करते हैं ॥९॥ वशीकरण यंत्र विधान पत्राष्ट काम्बु रुह मध्य गत त्रिमर्ति, शेषाक्षराणि च विलिख्य दलेषु देव्याः। माया वृतं मध समन्वित भांड मध्ये, निक्षिव्य पूजयति द्वादशमेति साध्याः ॥७॥ अर्थ-अष्ट दल कमलकी कर्णिकामें त्रि मर्ति (ही) लिख कर देवीके शेष अक्षरोंको आठ दलोंमें लिखे । और हींसे बेष्ठित कर दे । इस मंत्रको मधुरक्त बरतनमें रखकर जो इसका पूजन करता है, उसके वशमें इच्छित स्त्री पुरुष हो जाते हैं ॥७॥ __स्त्री द्रावण ध्यान रामा वरांग वदने स्मर वीज कंत्त, तस्योर्द्ध भाग तल भाग गतं त्रिमति । पार्श्वद्वये च पुन रेवल पिंडमेक, ध्यायेदुभतं द्रव मुपैति नदीव नारी ॥८॥ अर्थ स्पीके योनि प्रदेशमें स्मर बीज (कीं) शिर और पैरमें, हीं, और दोनों करवटोंमें एवल पिंड (ब्ले) का ध्यान करनेस स्त्री तुरंतही द्रवित हो जाती है ॥ ८॥ इत्यं पंडित मल्लिषेण रचितं श्री ज्वालिनी देविका स्तोत्रं शांतिकरं भयाप हरणं सौभाग्य संपत्कर अथ ज्वालामालिनीकी तीसरी साधन विधि पाश त्रिशूल कामुक रोपण ऊष चक्र फल वर प्रदानकरा॥ महिषारूढाष्ट भुजा शिखि देवी पातु मां साच ॥१॥ __ अर्थ-पाश, त्रिशूल, धनुष, बाण, मछली, चक्र, फल और वर प्रदान मुक्त आठ हाथोंवाली, भैंसे पर चढी हुई वह देवी ज्वालामालिनी मेरी रक्षा यरें ॥१॥ पत्थमुक्तरूपां तां मुखांतां ज्वालिनी तथा । आचरं नूप चाराणां पंचकं साध कोच्चयेत् ॥ २॥ अर्थ-साधक पुरुष उस देवी ज्वालामालिनीको एक पत्रके ऊपर२ कहे हुए रूपवाली लिखकर उसका पांचों उपचारोंसे पूजन करे ॥२॥ .
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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