SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १००। ज्वालामालिनी कल्प। अर्थ-मंदारके दूध, कुत्तीके दध और अपने मत्रमें, बहुत प्रकारसे भावना दे। फिर शनिश्चर वारको कुलिकाका उदय होनेपर धतूरेके ईधनकी आगमें ॥३४॥ गुजा सुगन्धिका कनकबीजचूर्णाहिकृतितिलतलैः। रद्ध पितानि भाजनविवरेणानंगशस्त्राणि ॥ ३५॥ अर्थ-गुजा, सुगन्धिका और कनकबीज सर्प कृति तथा काले तिलोंके तेलके साथ पकाकर सेवन करे। यह तेल कामदेवका शस्त्र है ॥ ३५॥ वश्य तेल (३) गोबंधिनींद्रवारुण्यवनीदरकर्णिका सुगंधिनिका । खरकर्णीत्येतेषां चूर्णौः सहपुगशकलानि ॥ ३६ ॥ अर्थ-गोबन्धिनी, इंद्रवारुणी, अवनी, दरकर्णिका, सुगंधिनिका और खरकर्णीके चर्ण के साथ पूग फलके हुकडोंको ॥ ३६ ॥ उन्मतकभांडगता न्यात्मसुमूत्रेण रक्त करवीरद्रघरासभीशुनीकुचपयसा भाव्यानि तानि पृथक् ॥ ३७॥ अर्थ-उन्मतकके बरतनमें रखकर अपने मूत्र, रक्तकरवीरका रस, गधी और कुत्तीके दूधसे पृथक् पृथक् भावित करे ॥ ३७॥ __ सप्तम पारच्छन् । उन्मतबीजगुखासुगन्धिकासप्पंकृतितिलतैलैः। कनकेन्ध नाग्नि सद्ध पितानि कुसुमास्त्र शास्त्राणि ।। ३८॥ अर्थ-फिर उसको उन्मतकके बीज, गुजा, सुगन्धिका सर्प, कृति और तिलके तेलोंके साथ कनकके इंधनकी अग्निपर पकाकर तेल बनावे । यह तेल कामदेवका शस्त्र होता है ॥३८॥ वश्य प्रयोग (२) कन्येद्वारुणिनागसप्पपातालगरुडरुद्रजटाचूर्णयुतैः क्रमुकफलान्यात्ममलैंर्विपुलकनकफले ॥ ३९ ॥ अर्थ-कन्या, इंद्रवारुणि, नागसर्प, पाताल, गरुड़ और रुद्रजटाके चूर्ण के साथ क्रमुकफल अपने पांचों मल और बडे धतूरेके फलको ॥ ३९ ॥ संभाव्य शुनिदुग्धप्लुतानि सद्ध पितानि पुनः।। जैत्रास्त्राणि मनोजस्येत्युक्त गांगपति गुरुणा ॥ ४० ॥ ___अर्थ-कुत्तीके दुग्धमें मावित करके धूपमें सुखानेसे यह कामदेवके विजयी शस्त्र बन जाते हैं। ऐसा गांग पति गुरुने कहा है॥४०॥ कामबाण चूर्ण रुद्रजटा सितगुज्जा लखरिकाः संनिधाय सर्यास्ये। दिवस त्रिभिरादाय प्रचूर्णक्षिपये स्वमलैः॥४१॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy