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________________ momemamalne w INNAMINAINIMINAINA - ॐ पक्षि स्वः इवी इवं हू: वं वः हः हंसः जः जः जह पक्षि स्वाहा । क्षःसं: सः हर हु हः । इत्यमृतमंत्रोऽयं ॥३१॥ अमृत मन्त्र चालामालिनी कल्प। पश्चिममें554ॐ अमृत धरे डाकिनि गर्भ सुरक्षिणी आत्मबीज है, फट् योगिनि देवदत्तं रक्षर स्वाहा ॥" उत्तरमें__"ॐरु रु चले हां हां ह्रौं हः क्ष्मां क्ष्मी क्ष्मूक्ष्म क्ष्मः सर्व योगिनि देवदत्तं रक्ष२ स्वाहा ।" अर्थ-यह यंत्र विधिपूर्वकर लिखा जानेसे शाकिनियोंसे भय नहीं होने देता ॥ २८ ॥ घट यंत्र नाम सकारान्तर्गतमबुधिटान्तावृतं बहिश्च कला। इवलयितमनिलाद्यष्टमावेष्ट्य हंसः पदं वलयं ॥२९॥ अर्था-नामको स, आ, थ, और ठ से क्रमशः वेष्टित करके उसके चारों ओर सोलहों स्वर लिखे । उसकी आठों दिशा ओंके वायु मंडलमें 'य' बीज और उसके चारों ओरके मंडलमें । 'हंसः' लिखे ॥ २९॥ टांतेन बहिर्वेष्व्यं को प्रों त्री ठस्सु बीज वलयं च ।। भान्तेन सु सम्पुटे ते तद्वलयितममृत मंत्रण ॥ ३०। अर्थ—उसके बाहरके वलयमें ", क्रों, प्रों, त्री, ठ" बीजोंको लिखकर उसके दोनों ओर म, बीज लिखे और फिर उसके चारों ओर नि लिखित मंत्र लिखे ॥३०॥ “ॐ पक्षि स्वः इवी इवं हवं हंसः जः जाजः पक्षि श्वः सं सं सः हर हुँ ह.". - कमलदलसहित मुख बुनामृतकलशेन वेष्टितं बाह्ये। वं वन्दनदलेषु लिखेत् बुनदलांतर्गतं लं च ॥३२॥ अर्थ-फिर यंत्रको कमल दल मुख पर रक्खे हुए अमृत कलशमें वेष्टित करे। उस कमलके पत्रों के बाहर 'ब' और अन्दर 'ल' लिखे। कूटस्थनालमूले घट यंत्रमिदं विलिख्य भूजंदले । काश्मीररोचनागुरुहिममलयजयावकक्षीरैः ॥ ३३ ॥ अर्थ-उस कमलको नालकी मलमें 'क्ष' बीज लिखे। इस यन्त्रको भोजपत्र पर केशर, गौरोचन, अगर, हिम, मलयज और जौ के दूधसे लिखे ॥ ३३ ॥ सूत्रेण बहिर्वेष्ट्य सिक्थकपरिवेष्टितं ततः कृत्वा । मलयज कुसुमाद्यचितनवपूर्ण घटे क्षिपेन्मतिमान् ॥ ३४ ॥ अर्थ-इस यन्त्रको सिक्थक (मोम) में लपेट कर बाहर
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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