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________________ - HomewomanARANIHING पंचम परिच्छेद । [६० ले , पंचम परिच्छेद म मा भूता कम्पन तैल वालामालिनी कल्प। लिखी हो, जिसके चारों ओर परस्पर विरोधी पशु हों ॥४३॥ एतक्रियावसाने प्रदर्शयेत्समवशरण मंडलमतुलं । नत्वा स्तुत्वा रं प्रविहाय सयाति दृष्ट्वेदं ॥ ४४ ॥ अर्थ-इस क्रियाके पश्चात् अतुलनीय समवशरण मंडलको बनाकर दिखावे, वह ग्रह इसको देखकर नमस्कार तथा तथा स्तुति करके बैरको छोडकर चला जाता है ॥४४॥ इतिश्री हेलाचार्य प्रणीत अर्थमें श्रीमान् इन्द्रनषि मुनि विरचित एप्रन्धमें चालामालिनी कल्पकी, काव्य साहित्य दीर्थाचार्य। प्राच्य विद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शाखो कृतः भाषाटीकामें "मंडलाधिकार" नामक चतुर्थ फल परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ३ ॥er 1 प्रतिक शुक तुण्डिका खलु शुक " तुण्डिकाक तुण्डिका चैव ।। सितकिणि हिकाश्व गंधा भूकष्मांडिंद वारुणिका ॥१॥ अर्थ-पूतिक शुक तुण्डिका काक तुण्डिका सफेद किणिहिका अश्वगंधा भू कूष्मांडि इंद्र वारुणी । कर पूति दमनोग्रगंधा श्रीपयंसकंध कुटज कुकरंजाः।। गो शृङ्गिशृङ्गिनाग सर्प विषमुष्टिकां जीराः ॥२॥ अर्थ-पूति दमन उग्रगंधा श्रीपर्णी असगंध कुटज कुकरंजा गोशूगि शूगिनाग सर्पविष मुष्टिक अंजीर। नाली रुचक्रांगी खरकणी गोक्षुरश्च विष नकुली । कनक वराह्यं कोल्ला अस्थि प्रमश्च लञ्जरिका ॥ ३ ॥ अर्थ-नीलीरुत् चक्रांगी खरकी गोखरू नवलेका विष कनक वराही अंकोल अस्थि प्रभ लञ्जरिका ॥३॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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