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________________ उड़ान 9047 लिखे, जो कुछ भी ज्वालामालिनी कल्पमें है। वह केवल गुरु मुखसे ही सुना जा सकता है ॥ ६८ ॥ वीजोंका कुछ वर्णन त्रिमूर्ति मूर्तिद्वय मैंद्रयुक्त, पयोधि मैंद्रस्थित मां समेतं । स्त्री रेतसो द्रावक मृत मंद्रा, मुमा हृदुद विधुस्त द्रांद्रीं ॥ ६९ ॥ अर्थ - त्रिमूर्तिवाला कीं, द्विमूर्तिवाला (ल) ऐंद्रयुक्त समुद्ररूप (हं) ऐंद्र (लं ) और लं सहित मंत्र स्त्रीके रजको द्रवित करता है। चंद्ररूप द्रां और द्रीं लक्ष्मीं के हृदयको भेदन करनेवाले हैं ॥ ६९ ॥ शून्यं द्वितीय स्वर बिन्दुयुक्त, स्वरो द्वितीयश्च सबिन्दु रन्यः । मृगेन्द्र विवि द्वश च कूटः, सविष्णु बिन्दु भवेदि तत्वं ॥ ७० अर्थ- दूसरा स्वर बिन्दुसे युक्त होनेपर शून्य कहलाता है। आं सहित उसीको दुबारा कूट विष्णु और बिन्दु सहित लेनेसे अर्थात् " आंआं क्षः ई अं" यह मंत्र सिंहके मार्गको भी वश में करता है ॥ ७० ॥ कूटशू भपिंडगर्भमपिंड निर्मितकर्णिके षोडश स्वरकेश रोज्वलशेषपिंडदलाष्टके । भासुरे नव तत्व वेष्टित पंकजेश निवासिनां ज्वालिनीं ज्यातिप्रभामनुचिन्त येत्फल दायिनीं ॥ ७१ ॥ तृतीयपरिच्छे ४१ अर्थ -- एक अष्टदल कमलकी कर्णिका के बीच क्ष्ल्यू बीज रखकर सोलह स्वरोंको परागके स्थान में और अवशेष पिण्डोको आठों दलों पर रक्खे। ऐसे तेजस्वी नव तत्वोंसे वेिष्टित उत्तम कमल में रहनेवालोंको ज्वालामालिनी देवी फलको देनेवाला उत्तम तेज देती है ॥ ७१ ॥ नाभौ क्लीं हृदये च ह्रीं शिरसि च द्रे पादयोः क्षीं गुदेः द्रांकों मूर्द्धन्यज रुद्धतमं कुश मधो यूँ चो परि ब्लू गले । जान्यो रथतेन रुद्ध ममलं पाशं स्वनं कर्णयो सर्वो शब्द कशे तनौ च परं भूता कृतौ विन्यसेत् ॥ ७२ ॥ अर्थ – संपूर्ण प्राणीकी आकृतिको कानों जंघाओं, शब्द Hye और शरीर में निम्नलिखित क्रमसे बीजोंको रक्खे। नाभिमें कीं इयमें ह्रीं शरमेंद्र दोनों पैरोंमें क्षीं गुद aria द्रां शिरमें कों दोनों हाथों में कं तथा कों प्यू ऊपर लू गलेमें यू घुटनोंमें अं और टं दोनों कानोंमें टं तथा दोनों जांघों और भूतकी आकृति में सर्वत्र र लगावे ॥७३॥ ॐ ह्रीं रेफ चतु यं शिखि मति वाणान्त मः पिण्ड सं भूतं तत्व पंच के जल युगं तत्प्रज्वलं प्रज्वल । सु ह' युग्मं दद युग्म माम युगलं धूमांध कारिण्यतः शीघ्र मेद्य मु वशं कुरु वशद्देव्यास्तु मंत्रः स्फुटं ॥७४ अर्थ - ॐ ह्रीं ह्रां ह्रौं ह्रौं ह्रः द्रां द्रों क्कों ब्लू सः जल
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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