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________________ ३४] चालामाकिनी कल्प। तृतीय परिच्छेद । [ ३५ ब्रांनी व्रवौं वः हाः सर्व दुष्ट ग्रहान् स्तंभय२ स्तोभयर अर्थ-इस सर्व निरोध आप्यायन मन्त्रके द्वारा अक्षत ताडयर ऊक्षीणि स्फोटयर प्रेषय२ दहर भेदय२ बंधयर । और जलको अभिमन्त्रित करने, अक्षतको मारने और जलसे ग्रीवा भंगय२ अंत्राणि छेदय छेदय हनर हां आं क्रोंक्षी धोनेसे सब ग्रहोंका विनाश हो जाता है ॥५१॥ ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट् घे थे। यह सर्व कार्थक मंत्र है, इसकी तर्जनी मुद्रा है। ॥४८॥ आत्मान्यस्मिन्या प्रति बिम्बे वाद निग्रहे विहिते । ग्रह निग्रहो भवेदिति शिखिमद्देवि मतं तथ्यं ॥५२॥ विनयो निर्विष पिंड स्व पंचतत्वं निरोध सहितं च । सर्व ग्रहान् समुद्रे हिर्मजय हूं तथैव फट् फट् घे घे ॥४९॥ अर्थ-इस या अन्य किसी निग्रह मंत्रका प्रयोग करनेसे ग्रहोंका निग्रह हो जाता है। ऐसा ज्वालामालिनीदेवीका अर्थ-ॐ मन्च्यू ज्वालामालिल ह्रीं झों ब्लू द्रां द्री सिद्धांत है ॥ ५२ ॥ क्रां क्रीं क्रों कः हाः दुष्ट ग्रहान् समुद्रे मजयर हां आं क्रों। पी ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुँ फट्२ घे घे ॥ ईषनात्रां नालिका मेकै काक्षर सुविच्ययावेष्टय । यह मजन मंत्र है, इसकी मञ्जन मुद्रा है ॥४९॥ जप्तः सप्तोत्तर विंशति मणिभिः त्रिसंध्यमप्यष्टशतं ॥५३॥ निर्विष पिंडः स तव में है ऊं ग्रहानथ समस्तान् ॥ अर्थ-एकर अक्षरका अपने हृदय में अच्छी तरहसे उत्थापय द्वयं नट नृत्य द्वितयं तथा स्वाहा ॥ ५० ॥ ध्यान करके प्रातः दोपहर तथा सार्यकालमें सत्ताईस मणियों द्वारा एकसौ आठ बार जप करना चाहिये ॥ ५३॥ अर्थ-झमल्व्यू ज्वालामालिनि ह्रीं ह्रीं ब्लं द्रां द्रीं सं तंव में है ऊं सर्वे दुष्ट ग्रहान उत्थापयर नट२ नृत्यर हां आं विषमणिविषमशाकिनीविषमग्रह विषममानुषां सर्वे । क्रों ही ज्वालामानिन्या ज्ञापयति स्वाहा। निविषतां गत्वा ते वश्याः स्युः क्षोभमेति जगत् ॥ ५४॥ यह अप्यायन मंत्र है, इस ही आप्यायन मुद्रा है ॥५०॥ __ अर्थ-भयंकर सर्प, भयंकर शाकिनी, विषम ग्रह, और सर्व निरोधे वाप्यायन मंत्रेणानेन साक्षतं सलिलं । सब विषम मनुष्य निर्विष होकर वशमें हो जाते हैं, और अभिमंत्र्य ताडयत्क्षालयेच कृत निग्रहं स्यात् ॥५१॥ सम्पूर्ण जगतको क्षोभ प्राप्त होता है ॥ ५४ ॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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