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________________ wimmismamimmmmmmmmmmmmms ।' विद्युन्निभमावेशं गृह्णाति च वदति कौलिकी भाषां ।' साधावति वेगे नेति स्त्रीग्रहसलक्षणं प्रोक्त ॥ १८ ॥ ज्वालामालिनी कल्प। अर्थ-जंघीसे ग्रहण किया हुआ मनुष्य मूञ्छित होता है, रोता है, और उसका शरीर कुश हो जाता है, प्रेताशिनीसे ग्रहण किया हुआ भय करनेवाली ध्वनिसे शब्द करता हुआ चकित हो जाता है। -4 : what उतिष्टति दष्टोष्टः स एव वीर ग्रहो बुधैः प्रोक्तः । म T o मासद्वि तयात्परतस्तस्य चिकित्सा न लोकेऽस्ति ॥ १५ ॥ अर्थ ऐसा व्यक्ति होंठ चबार कर उठता है। पंडितोंने इसीको वीर ग्रह कहा है। इसकी चिकित्सा दो माससे आगे संसारभरमें नहीं हो सकती ॥ १५ ॥ भोक्तं न ददाति न च प्रियांगना संगम तथा कतु स्वयमेव प्रच्छन्नं जीवति सहते न वट यक्षी ॥ १६ ॥ अर्थ-बट यक्षीसे पीड़ित पुरुष न खाता है। और न अपनी प्रिय स्त्रीका ही संग करता है। यक्षी गुप्त रूपसे उसके साथ रहती है ॥ १६॥ शुष्यति मुर्ख कृशं स्याद्गात्रं वैतालिका ग्रही तस्य ।। तत्क्षेत्रवासिनी पीड़ितो नरो नर्ति हा हसति ॥ १७ ॥ अर्थ-वैतालिकासे पकड़े हुएका मुख सूख जाता है और शरीर कुश हो जाता है। क्षेत्रवासिनीसे पीड़ित पुरुष नाचता है और हा हा करके हंसता है॥१७॥ अर्था-ऐसा व्यक्ति विजलीके समान आवेशको ग्रहण करता है। ऊँची ऊँची बातें करता है और चेगसे दौड़ता है। यह दिव्य स्त्री ग्रहोंका लक्षण कहा गया ॥ १८ ॥mputer मिथ्याग्रहस्तथान्ये विद्यन्ते तानपि विद्वान्सः। सत्य ग्रहान् प्रकुर्वन्ति शेमुषी वैभववलेन ॥ १९ ॥ कि अर्थ-विद्वान् लोग बुद्धिके बलसे मिथ्या ग्रहों (अदिव्य ग्रहों) को सत्य ग्रह (दिव्य ग्रह) कर देते हैं।॥ १९ ॥ कखगघ जैश्च उततपैर्य शर कल सके * शवहर लैश्वान्योन्य । परिवर्तित रल युतै निद्दिष्टं भूत देव कौलिक मे तत् ॥२०॥ अर्थ-इन ग्रहोंका निवारण अ, क, ख, ग, घ, ज, उ, बत, प, य, श, र, ष, ल, व, व, ह, र और ल, से एक इसरेको अऔर ल से युक्त करके भूत और देवोंका कीलन होता है ॥ २० ॥ _अदिव्य ग्रह दंष्टालनामादनु ग्रहाः शाखिलच शशनागः । ग्रीवा भंगोचलितौ षड पस्मार ग्रहाः प्रोक्ताः ॥ २१ ॥
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
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