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________________ २) नावाणं कडएणं राया जिणइ । नौकाओं के सैन्य से राजा जीता है । (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative) अधिकरणकारक १) छत्तो मज्जायाए वट्टेज्जा । छात्र मर्यादा में रहें । २) खगाणं नीडा साहासु सोहंति । पक्षियों के घोंसले शाखाओं पर शोभते हैं । (७) संबोधन विभक्ति : ( Vocative) निमंत्रण, संबोधन १) भज्जे ! तुरियं आगच्छसु । भायें ! जल्दी आओ । २) कन्ना / कन्नाओ ! अज्झयणं करेह । कन्याओ ! अध्ययन करो । विभक्ति प्रथमा (Nominative) द्वितीया (Accusative) तृतीया (Instrumental) पंचमी (Ablative) षष्ठी (Genitive) सप्तमी (Locative) संबोधन (Vocative) अकारान्त नपुं. 'वण' शब्द एकवचन वणं (एक वन) वणं (वन को ) वणेण, वणेणं अनेकवचन वणाई, वाणि (अनेक वन) वणाइं, वणाणि (वनों को) वणेहि, वणेहिं II (वन ने) (वनों ने) वणेहिंतो वणा, वणाओ (वन से) (वनों से ) वणस्स (वन का ) वणे, वर्णसि, वणम्मि (वन में, वन पर) वणाण, वणाणं (वनों का) वणे, वसुं (वनों में, वनों पर) वणाइं, वणाणि (हे वनों !) वण (हे वन !) इसी तरह पुप्फ (पुष्प), पण्ण (पर्ण, पान), घर, उज्जाण (उद्यान), कम्म (कर्म), सील (शील), पुण्ण (पुण्य), फल, गुण, दाण (दान), बल, मंस (मांस), मज्ज (मद्य), रज्ज (राज्य), पोत्थग (पुस्तक), पाव (पाप),
SR No.009955
Book TitleJainology Parichaya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2012
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size254 KB
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