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________________ ५) वंद - वंदन करना । सीसो आयरियं वंदे । शिष्य आचार्य को वंदन करें । ६) उवविस - बैठना । गिलाणस्स समीवं उवविसे । ग्लान के समीप (नजदीक) बैठें । आय - आचरण करना । सुण्हा विणयपुव्वं आयरेज्जा । बहुओं को विनयपूर्वक आचरण करना चाहिए । ८) कील - क्रीडा करना, खेलना । छत्ता संझासमए कीलेज्जा । विद्यार्थियों को संध्यासमय में खेलना चाहिए । ९) खम क्षमा करना । मम अवराहं खमेज्जा । मेरे अपराधों की क्षमा करो । १०) वस - रहना । सीसो गुरुस सगास वसेज्जा । शिष्य को गुरु के पास रहना चाहिए । ११) आराह - आराधना करना । मुणी सुणाणं आहेज्जा । मुनि को श्रुतज्ञान की आराधना करनी चाहिए | १२) उट्ठ - उठना । सुघरिणी सुप्पहाए उट्ठेज्जा । सुगृहिणी को सुप्रभात में उठना चाहिए । - जीतना । नरो मोणेण कोहं जिणेज्जा । मनुष्य मौन से क्रोध जीतें । १३) जिण
SR No.009954
Book TitleJainology Parichaya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2011
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size265 KB
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