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________________ अणु मात्र व्रतवाला अर्थात् जिसके एक देश यथाशक्ति पाँचों पापों का त्याग हो वह गृहथ कहलाता है। दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिक प्रोषधोपवासोपभगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागवतसंपन्नश्च ।।२१ ।। दिग्विरति, देशविरति, अनर्थ दंड विरति ये तीन गुणव्रत तथा सामायिक प्रोषधोपवास, उपभोग परिभोग परिमाण और अतिथि संविभाग ये चार शिक्षा व्रत हैं। ये सात व्रत भी गृहस्थी को धारण करना चाहिए। मारणान्तिकी सल्लेखनां जोषिता।।२२।। गृहस्थ मृत्यु के समय होने वाली सल्लेखना को प्रीति पूर्वक धारण करे। शंकाकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसा संस्तवा: सम्यग्दृष्टेरतीचाराः।।२३।। शंका, काङ्क्षा (इस लोक और परलोक सम्बन्धी भोगों की वाञ्छा), विचिकित्सा (मुनियों को मलिन देखकर ग्लानि करना) अन्यदृष्टि प्रशंसा (मिथ्या दृष्टि के ज्ञान चारित्र आदि की मन से प्रशंसा करना) अन्यदृष्टि संस्तव (उनकी वचन से स्तुति करना) ये सम्यग्दृष्टि के पाँच अतीचार हैं। व्रतशीलेषु पंचपंच यथाक्रमम् ।।२४।। इसी प्रकार पाँच व्रत और सातशीलों में भी क्रम से पाँच पाँच अतीचार हैं। बंधवधच्छेदातिभारारोपणान्नपान निरोधाः।।२५।। बंध, बध, छेद, अतिभारारोपण और अन्नपाननिरौध ये पाँच अहिंसाणुव्रत के अतीचार हैं।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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