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________________ तन्मध्येयोजनं पुष्करम्।७।। उसके बीच में एक योजन का लम्बा चौड़ा कमल हे। तद द्विगुणद्विगुणा हृदापुष्कराणिच।।८।। पहिले तालाब और कमल से अगले अगले तालाब और कमल दुगुणे दुगुणे विस्तार वाले हैं। तन्निवासिन्यो देव्य: श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्य: पल्योपमस्थितयः ससामानिक परिषत्का:।।९।। उक्त कमलों में निवास करने वाली श्री, ही, धृति कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छ: देवियाँ सामानिक और पारिषद जाति के देवों सहित हैं। और उनकी स्थिति एक पल्पोपम की है। गंगासिन्धुरोहितरोहितास्याहरिद्धरिकांतासीतासीतोदानारीनरकांतासवर्णरूप्यकलारक्तारक्तोदासरितस्त न्मध्यगाः।।२०।। उक्त छ: सरोवरों से निकलने वाली गंगा, सिन्धु रोहित, रोहितास्या, हरित् हरिकांता, सीता, सीतोदा, नारी नरकांता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता, रक्तोदा ये चौदह नदियें उन भरतादि सप्त क्षेत्रों में बहती हैं। यो: पूर्वाः पूर्वगाः।।२१।। सूत्र निर्देश की अपेक्षा दो दो के यगल में पहिली पहिली नदी पूर्व समुद्र में जाकर गिरती हैं शेषस्त्वपरगाः।।२२॥ बाकी की सात नदियाँ पश्चिम समुद्र में जाकर गिरती हैं। चतुर्दशनदी सहस्रपरिवृतागंगासिध्वादयोनद्यः।।२३।।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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