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________________ DRIVIPULIBOO1.PM65 (60) (तत्त्वार्थ सूत्र ###### ######अध्याय -D बतलायी है आगे नहीं बतलायी ॥२९॥ क्रमश: आगे के स्वर्गो में आयु बतलाते हैं सानत्कुमार-माहेन्द्र यो: सप्त ||३०|| अर्थ- सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में देवों की उत्कृष्ट आयु सात सागर से अधिक है ॥३०॥ त्रि-सप्त-नवैकादश-त्रयोदश-पञ्चदशभिरधिकानि तु ||३१।। अर्थ-सात सागर में क्रम से तीन, सात, नौ, ग्यारह, तेरह और पन्द्रह जोड़ देने से आगे के छह कल्प युगलों में देवों की उत्कृष्ट आयु होती है। तथा यहाँ जो "तु" शब्द दिया है वह यह बतलाने के लिए दिया है कि अधिक आयु की अनुवृत्ति बारहवें स्वर्ग तक ही लेना चाहिये, आगे नहीं। अतः यह अर्थ हुआ कि ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में कुछ अधिक दश सागर उत्कृष्ट आयु है । लान्तव और कापिष्ट में कुछ अधिक चौदह सागर उत्कृष्ट आयु है। शुक्र महाशुक्र में कुछ अधिक सोलह सागर उत्कृष्ट आयु है । शतार सहस्त्रार में कुछ अधिक अट्ठारह सागर, आनत प्राणत में बीस सागर और आरण अच्युत में बाईस सागर उत्कृष्ट आयु है ॥३१॥ कल्पातीत देवों की आयु बतलाते हैंआरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च।।३।। अर्थ- आरण और अच्युत स्वर्ग के ऊपर नौ ग्रैवेयकों में एक एक सागर आयु बढ़ती जाती है। अतः पहले ग्रैवेयक में तेईस सागर की और अंतिम ग्रैवेयक में इकतीस सागर की आयु है। उससे एक सागर अधिक यानी बत्तीस सागर की आयु अनुदिश विमानों में है। उससे एक सागर अधिक यानी तैतीस सागर की आयु विजयादि विमानो में है और सर्वार्थसिद्धि में तैतीस सागर की ही आयु है उससे कम नहीं है ॥३२॥ तत्त्वार्थ सूत्र **** ***** **अध्याय - अब वैमानिक देवों की उत्कष्ट आयु कह कर जधन्य आयु कहते हैं अपरा पल्योपममधिकम् ||३३|| अर्थ-सौधर्म और ऐशान स्वर्गो में देवों की जधन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक है ॥३३॥ परत: परत: पूर्वाऽनन्तरा ||३४|| अर्थ- नीचे- नीचे के स्वर्गों में जो उत्कृष्ट आयु है वही उसके ऊपरऊपर के स्वर्गों में जधन्य आयु है। अर्थात् सौधर्म, ऐशान में जो दो सागर से अधिक आयु है वह सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में जधन्य आयु है। सानत्कुमार माहेन्द्र में जो सात सागर से अधिक उत्कृष्ट आयु है वही ब्रह्मब्रह्मोत्तर मे जधन्य है। इसी तरह ऊपर के समस्त कल्पों में और कल्पातीतों में जानना चाहिये ॥३४॥ नारकियों की उत्कृष्ट आयु तो कह चुके किन्तु जधन्य आयु नहीं कही। अतः नारकियों का प्रकरण नहीं होने पर भी थोड़े में कहने के अभिप्राय से उनकी जधन्य आयु यहाँ कहते हैं नारकारणां च द्वितीयादिषु ||३७।। दूसरी आदि पृथिवियों में भी जो ऊपर ऊपर उत्कृष्ट आयु है वही उसके नीचे की पृथिवियों की जधन्य आयु है। अर्थात् रत्नप्रभा एक सागर की उत्कृष्ट आयु है वहीं शर्कराप्रभा मे जधन्य आयु है।शर्कराप्रभा मे जो तीन सागर की उत्कृष्ट आयु है वही बालुकाप्रभा में जधन्य आयु है। इस तरह सातवें नरक तक जानना चाहिये ॥३५॥ पहली पृथिवी के नारकियों की जधन्य आयु कहते हैं दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ||३६।। अर्थ- पहली पृथिवी के नारकियों की जधन्य आयु दस हजार
SR No.009949
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherPrakashchandra evam Sulochana Jain USA
Publication Year2006
Total Pages125
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size3 MB
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