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________________ DRIVIPULIBOO1.PM65 (39) (तत्त्वार्थ सूत्र ##############अध्याय -D इस प्रश्न का समाधान करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं सर्वस्य ॥४॥ अर्थ-ये दोनो शरीर सभी संसारी जीवो के होते हैं ।। ४१ ।। आगे बतलाते हैं कि इन पाँच शरीरों में से एक जीव के एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं ? तदादीनि भाज्यानि युगपदेकरिमन्नाचतुर्य: ।। ४३ ।। अर्थ- तैजस और कार्मण शरीर को लेकर एक जीव के एक समय में चार शरीर तक विभाग कर लेना चाहिये । अर्थात् विग्रह गति में तो जीव के तैजस और कार्मण ये दो शरीर ही होते हैं। विग्रह गति के सिवा अन्य अवसरों पर मनुष्य और तिर्यन्चों के औदारिक, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं । तथा छटे गुणस्थानवर्ती किसी-किसी मुनि के औदारिक, आहारक, तैजस, कार्माण या औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, कार्मण ये चार शरीर होते हैं। वैक्रियिक और आहारक शरीर एक साथ न होने से एक साथ पांच शरीर नहीं होते ॥ ४३ ॥ आगे शरीर के विषय में विशेष कथन करते हैं निरुपभोगमन्त्यम् ||४४|| अर्थ-अंत का कार्मण शरीर उपभोग रहित है । इन्द्रियों के द्वारा शब्द वगैरह के ग्रहण करने को उपभोग कहते हैं। इस प्रकार का उपभोग कार्मण शरीर में नहीं होता इसलिए वह निरुपभोग है। आशय यह है कि विग्रह-गति में कार्मण शरीर के द्वारा ही योग होता है किन्तु उस समय लब्धिरूप भावेन्द्रिय ही होती है, द्रव्येन्द्रिय नहीं होती । इसलिए शब्द आदि विषयों का अनुभव विग्रह गति में न होने से कार्मण शरीर को निरुपभोग कहा है। शंका - तैजस शरीर भी तो निरुपभोग है फिर उसे क्यों नहीं कहा? तत्त्वार्थ सूत्र ***************अध्याय - समाधान - तैजस शरीर तो योग में भी निमित्त नहीं है । अर्थात् जैसे अन्य शरीरों के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों में कम्पन होता है, तैजस के निमित्त से तो वह भी नहीं होता । अतः वह तो निरुपभोग ही है इसी से यहाँ उसका कथन नहीं किया; क्योंकि निरुपभोग और सोपभोग का विचार करते समय उन्हीं शरीरों का अधिकार है जो योग में निमित्त होते हैं। ऐसे शरीर तैजस के सिवा चार ही हैं उनमें भी केवल कार्मण शरीर निरुपभोग है बाकी के तीन शरीर सोपभोग हैं क्योंकि उनमें इन्द्रियाँ होती हैं और उनके द्वारा जीव विषयों को भोगता है ॥४४॥ अब यह बतलाते हैं कि किस जन्म से कौनसा शरीर होता है गर्भ-सम्मूर्छनजमाद्यम् ।।४७|| अर्थ- गर्भ जन्म तथा सम्मूर्छन जन्म से जो शरीर उत्पन्न होता है वह औदारिक शरीर है ॥ ४५ ॥ औपपादिकं वैक्रियिकम् ||४|| अर्थ- उपपाद जन्म से जो शरीर उत्पन्न होता है वह वैक्रियिक शरीर है ॥४६॥ यदि वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से उत्पन्न होता है तो क्या बिना उपपाद जन्म के वैक्रियिक शरीर नहीं होता? इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं लब्धिप्रत्ययं च ।।४७|| अर्थ-लब्धि से भी वैक्रियिक शरीर होता है। विशेष तपस्या करने से जो ऋद्धि की प्राप्ति होती है उसे लब्धि कहते हैं। अतः मनुष्यों के तप के प्रभाव से भी वैक्रियिक शरीर हो जाता है ॥४७॥ तप के प्रभाव से वैक्रियिक शरीर ही होता है या अन्य शरीर भी होते हैं? इस आशंका का समाधान करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं
SR No.009949
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherPrakashchandra evam Sulochana Jain USA
Publication Year2006
Total Pages125
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size3 MB
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