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________________ मोक्ष अधिकार (६७) नहीं है अतः ये भिन्न हैं। रागादिका जो चैतन्यके साथ उठना है याने चेननमें झलकना है वह चेत्यचेतक भावके कारण हैं, एक स्वरूप होनेके कारण नहीं है सो रागादिका झलकना तो और यही सिद्ध करता है कि आत्मा चेनन है, उसका स्वरूप चेतना है। जैसे कि दीपकके होनेपर घटादिक पदार्थ प्रकाशित होते हैं सो यह प्रकाश्यप्रकाशकताके कारण हैं, एक पदार्थके कारण नहीं। यहां भी घटादिका प्रकाशित होना यही सिद्ध करना है कि प्रदीप प्रकाशकता स्वभाव वाला है। १९५- इस आत्माका ग्रहण प्रज्ञा द्वारा करना चाहिये । पहिले ज्ञासे भेद किया था कि मै चैतन्यस्वभाव हू व रागादि बन्धस्वभाव हैं। अब चैनन्य स्वभावको ग्रहण करना कि मैं चेतने वाला हू, चेतता हुआ चेतता हू , चेतने वालेको चेतता हूँ, चेनयमानके द्वारा चेतता हूँ, चेतयमान' के लिये चेतता हूँ, चेनयमानसे चेतता हू, चेतयमानमे चेतता हूं, फिर निर्विकल्प स्वरूप अनुभव करके इन विकल्पोका भी निषेध करके ऐसा अनुभव करे कि मैं सर्व विशुद्ध चैतन्यमात्र हूं। इस प्रकार जो निज तत्त्व का ग्रहण करता है वह वन्धनको प्राप्त नहीं होता और जो निज तत्त्वकी दृष्टिसे च्युत होकर पर द्रव्यका ग्रहण याने "ममेदं, अहमिदं वा" विकल्प करता है वह वन्धनको प्राप्त होता है क्योंकि परद्रव्यका ग्रहण करनेसे वह अध्यात्म चौर है । जैसे जो चोरी करता है याने परकी चीनको अपनी बनाता है वह शकित रहता है व बंधता है, इसी प्रकार जो पर पदार्थको अपना मानता है याने ग्रहण करता है, वह भी शङ्कित होता है व बंधता है। १६६-तथा जैसे जो परद्रव्यका ग्रहण करता है वह चौर दण्ड पाकर शुद्ध होता है पाश्चात् निःशङ्क हो जाता है । इसी प्रकार परद्रव्यका राग आदि रूप ग्रहण करता है वह प्रतिक्रमणादिरूप दण्ड पाकर शुद्ध होता है पश्चात् निःशङ्क शुद्धात्माराधनामें लग जाता है। १६७-और, जो पर द्रव्यका ग्रहण वाञ्छा भी नहीं करते हैं वे प्रथमतः एव दण्डकी सम्भावना बिना निःशङ्क रहते हैं और अपनी प्रवृत्ति
SR No.009948
Book TitleSamaysara Drushtantmarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1960
Total Pages90
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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