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ॐ नमः सिद्ध भ्यः, ॐ नमः सिद्ध भ्यः, ॐ नमः सिद्ध न्यः णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं ।
णमो उवज्मायाणं, णमा लीए सव्वसाहूणं ॥ हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम । ज्ञाता द्रष्टा श्रातमराम ॥टेका।
मैं वह हूं जो हैं भगवान, जो मैं हूं वह है भगवान । अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग वितान ।।
(२) मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति सुख ज्ञान निधान । किन्तु आशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान ।।
सुख दुख दाता कोइ न आन, मोह राग रूप दुख की खान । निजको निज परको पर जान, फिर दुखका नहिं लेश निदान
जिन शिव ईश्वर ब्रह्मा राम, विष्णु बुद्ध हरि जिसके नाम । राग त्यागि पहुँचू निजधाम, आकुलताका फिर क्या काम ।।
होता स्वयं जगत परिणाम, मैं जगका करता क्या काम | दूर हटो परकृत परिणाम, "सहजानन्द" रहूँ "अभिराम"||
॥अहिंसा धर्म की जय ।।