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________________ (३६) सहजानन्दशास्त्रमालायां निमित्तमात्र करके आत्मा ठंडेपनका अनुभव करे सो यहाँ यह ज्ञान तो उस कालमें आत्मासे अभिन्न है, सो यह अनुभव पुद्गलसे अत्यन्त भिन्न है । ऐसा विवेकवल होनेसे वह प्राणी अपनेको शीतरूप अनुभव नहीं करता है । इसी प्रकार ज्ञानी आत्मा देह व पुद्गल कर्मके संयोग कालमें भी अपना विवेकवल सही रखता और जानता है कि यह तो पुद्गलकी अवस्था है, सो पुद्गलमें ही है, आत्मासे तो अत्यन्न भिन्न है। हां उस स्कन्धकी विशिष्ट अवस्थाको निमित्तमात्र पाकर आत्मामें जो विभावका अनुभव हुआ है, वह उस कालसे आत्मासे अभिन्न है और पुद्गलसे तो अत्यन्त भिन्न ही है। ऐसा विवेकवल होनेसे आत्मा किञ्चित् भी अज्ञान रूपसे नहीं परिणमता है, ज्ञानमय निज आत्माके ज्ञानपनेको ही प्रक्ट करता है । इस प्रकार वह ज्ञानी जीव समस्त पर पदार्थोका अकर्ता तो है ही; साथ ही रागादि विभावको भी परभाव जानता है, अपनेको ज्ञानरूप. अनुभव करता है, अतः रागादि कर्मका भी अकर्ता हो जाता है। ___EE-अज्ञानसे कर्म किस प्रकार आते हैं ? इसका स्पष्टीकरण यह है कि जैसे लाल मसालेका जिसमें संयोग है, ऐसा मलिन काच (दर्पण) सम्मुख हुए डाकके अनुरूप अपना परिणमन कर लेता है, उस परिणमनको विशेष व्यक्त करता है, उसको अपना लेता. है याने ऐसा अपना लेता है कि अन्य पदार्थ जो इस ढाकके पीछे हो, उनके छायारूप भी अपनेको नहीं बना पाता है और न अपना स्वच्छ भाव भी उस समय प्रकट कर पाता है । इसी प्रकार यह लोब जो कि अज्ञानरूप है, परपदार्थ व निज आत्माको एक रूपसे श्रद्धामें लेता है, याने इन्हें जुदे जुदं सत्तावानके रूपमें विश्वास नहीं कर पाता है, पर पदार्थ व निज आत्माको अविशेष रूपसे जानता है व इनमें अविशेष रूपसे वृत्ति करता है। इसी कारण अपनेको "मैं राग हूँ, मैं क्रोध हूँ" इत्यादि रूपसे अनुभव करता है । तब इस परिणामसे परिणमना हुआ जीव इस विकारका कर्ता हुआ। इस विभावको निमित्तमान पाकर पुद्गल कर्म स्वयं बन्ध अवस्थाको प्राप्त
SR No.009948
Book TitleSamaysara Drushtantmarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1960
Total Pages90
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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