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________________ सहजानन्दशास्त्रम लायां सफेद खून होना आत्माका स्वभाव नहीं है फिर भी इस असमानजातीयपर्यायरूप एक पिण्ड होनेपर यह व्यवहार किया जाता है कि तीर्थकरकेवलीपुरुष सफेद खून वाले हैं । यह मात्र व्यवहारकी स्तुति है। निश्चयनयसे शरीरकी स्तुतिसे आत्माकी स्तुति नहीं होती । (यहाँ गुण शब्दका अर्थ परिणाम करना)। २६-जैसे चांदीका गुण जो सफेदीपन है वह सोनेमें नहीं है इसलिये निश्चयसे चाँदी के गुण सफेदीके द्वारा सोनेका व्यपदेश (ज्ञान) नहीं होता, सोनेके गुणसे ही सोनेका व्यपदेश होगा । वैसे शरीरका गुरा जो सफेद खून, सुन्दर रूप आदि है वह तीर्थकरकेवली पुरुपमें नहीं होना इसलिये निश्चयसे तीर्थकर भगवानके गुणोसे ही तीर्थकरकेवलोकी स्तुति होगी शरीरके गुणोंसे तीर्थकरकी स्तुति नहीं होगी। २७-यहाँ अज्ञानी प्रश्न करता है कि जब शरीरका अधिष्ठाता आत्मा है तब शरीरकी स्तुतिसे आत्माकी स्तुति क्यों न मानी जावे । उत्तरमें ज्ञानी कहते हैं कि जैसे नगरका अधिष्ठाता राजा है तो भी नगर. का ऐसा वर्णन कर दिया जावे कि इस नगरके बगीच इतने फैले हुए हैं कि मानो इस नगरने बगीचोंसे सारी भूमि निगल ली, मकान इतने ऊंचे हैं कि मानो मकानोसे सारे आकाशको खा ढाला, खाई इतनी गहरी हैं कि मानो खाईके द्वारा पातालको पी लिया। तो क्या इस नगरके वर्णनसे राजाका वर्णन हो गया ? नहीं हुआ। वैसे शरीरका अधिष्ठाता वर्तमानमें आत्मा है तो भी शरीरका कैसा ही उत्तम वर्णन कर दिया जाये कि जिनेन्द्रका रूप महासुन्दर है अक्षोभ है आदि । तो क्या शरीरके इस वर्णनसे श्रात्माका वर्णन हो गया? नहीं हुआ। क्योंकि तीर्थकरकेवली यद्यपि इस समय शरीरके अधिष्ठाता है तो भी तीर्थकरकेवली भगवानके शरीरका कोई भी गुण नहीं है इसलिये शरीरकी स्तुतिसे आत्माकी स्तुति नहीं हुई। आत्माकी स्तुतिसे ही श्रात्माकी स्तुति होती है। जैसे-हे भगवन् आपने ज्ञानस्वभावकी भावनासे इन्द्रियोंको जीतकर जितेन्द्रियता ,आप मोहको जीतकर जितमोह हुए और क्षीणमोह हुए आदि ।
SR No.009948
Book TitleSamaysara Drushtantmarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1960
Total Pages90
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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