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________________ ६४ ] श्रीप्रवचनसारटोका । भोजन करूँगा तो बहुत प्राणियोंका घात होगा क्योंकि मार्गमें जंतु बहुत हैं । रक्षा होना कठिन है । वर्षा पड़ रही है । (५) तप सिद्धिके लिये (६) समाधिमरण करते हुए । साधु उसी भोजनको, करेंगे जो शुद्ध हो । जैसा मूलचारमें कहा है णवकोडीपरिसुद्धं असणं वादालदोसपरिहोणं । संजोजणाय होणं पमाणसहियं विहितु दिण्यां ॥ ४८२ ॥ विगदिंगाल विधूमं छकारणस जुदं कमविसुद्धं । जन्त्तासाधनमत्तं चोदसमलवजिदं भुंजे ॥ ४८३ ॥ भावार्थ - जिस भोजनको मुनि लेते हैं वह नवकोटि शुद्ध, हो, अर्थात् मन द्वारा कृतकारित अनुमोदना, बचनद्वारा कृतकारित अनुमोदना, कायद्वारा कृतकारित अनुमोदनासे रहित हो, सर्व छ्यालीस दोष रहित हो तथा विधिसे दिया हुआ हो । श्रावक दातारको नवधा भक्ति करनी चाहिये अर्थात् १ प्रतिग्रह या पडगाहनाआदरसे घरमें लेना, २ उच्चस्थान देना, ३ पाद प्रछालन करना, ४ पूजन करना, ९ प्रणाम करना, ६ मन शुद्ध रखना, ७ चन्चन शुद्ध कहना ८ काय शुद्ध रखना, ९ भोजन शुद्ध होना । तथा दातारमें सात गुण होने चाहिये अर्थात् इस १ लोकके फलको न चाहना, २ क्षमा भाव, ३ कपट रहितपना, ४ ईर्षा न करना, ९ विषाद न करना, ६ प्रसन्नता, ७ अभिमान न करना । छः कारण सहित भोजन करे १ भूख- वेदना शमनके लिये, २, वैयावृत्य करनेके लिये, ३ छः आवश्यक क्रिया पालनेके लिये, ४ इंद्रिय व प्राण संयम पालनेके लिये, ५ दश प्राणोंकी रक्षाके लिये, ६ दशलाक्षणी धर्मके अभ्यासके लिये, तथा साधु क्रमकी शुद्धिको ध्यान में
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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