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________________ तृतीय खण्ड । [ 8€ जीवादि पदार्थोंके व्याख्यानमें अयथार्थ बचन त्यागकर यथार्थ कहना सो सत्य महाव्रत है । मुनि मौनी रहते, व प्रयोजन पड़नेपर शास्त्रानुकूल बचन बोलते हैं । ३ - अस्तेय मूलगुण | गामादिसु पडिदाई अप्पप्पहृदि परेण संगहि | णादाणं परदव्वं अदत्तपरिवजणं तं तु ॥ ७ ॥ भावार्थ- ग्राम, वन आदिमें पडी हुई, रक्खी हुई, भूली हुई अल्प या अधिक वस्तुको व दूसरेसे संग्रह किये हुए पदार्थको न उठा लेना सो अदत्तसे परिवर्जन नामका तीसरा महाव्रत है । मुनिगण अपने व परके लिये स्वयं वनमें उपजे फल फूलको व नदी के जलको भी नहीं ग्रहण करते हैं। जो श्रावक भक्तिपूर्वक देते हैं उसी भोजन पानको ग्रहण करके संतोषी रहते हैं । ४ - ब्रह्मचर्यव्रत मूलगुण । मादुसुदाभगिणीवियदणित्थित्तियं च पडिरुवं । इत्यिकहादिणियत्ती तिलोयपुजं हवे वंभं ॥ ८ ॥ भावार्थ- वृद्ध, बाल व युवा तीन प्रकार स्त्रियोंको क्रमसे माता सुता च वहनके समान देखकरके तथा देवी, मनुष्यणी व तिर्यंचनीके चित्रको देखकरके स्त्रीकथा आदि काम विकारोंसे छूटना सो तीन लोक पूज्य ब्रह्मचर्यव्रत है । मुनि महाराज मन वचन कायसे देवी, मनुष्यणी, तियंचनी व अचेतन स्त्रियों के. रागभावके सर्वथा त्यागी होते हैं । ४
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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