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________________ तृतीय खण्ड। [७ होते हैं जब विकल्प रहित समाधिरूप परम सामाईक नामके निश्चय व्रतके द्वारा 'जो मोक्षका बीज है' मोक्ष प्राप्त होजाती है। इस कारणसे वही सामाईक आत्माके मूल गुणोंको प्रगट करनेके कारण होनेसे निश्चय मूलगुण होता है । जब यह जीव निर्विकल्प समाधिमें ठहरनेको समर्थ नहीं होता है तव जैसे कोई भी सुवर्णको चाहनेवाला पुरुष सुवर्णको न पाता हुआ उसकी कुंडल आदि अवस्था विशेषोंको ही ग्रह्ण कर लेता है, सर्वथा सुवर्णका त्याग नहीं करता है तैसे यह जीव भी निश्चय मूलगुण नामकी परम समाधिका लाभ न होनेपर छेदोपस्थापना नाम चारित्रको ग्रहण करता है । छेद होनेपर फिर स्थापित करना छेदोपस्थापना है । अथवा छेदसे अर्थात् व्रतोंके भेदसे चारित्रको स्थापन करना सो छेदोपस्थापना है। वह छेदोपस्थापना संक्षेपसे पांच महाव्रत रूप है। . उन ही व्रतोंकी रक्षाके लिये पांच समिति आदिके भेदसे उसके अट्ठाईस मूलगुण भेद होते हैं। उन ही मूलगुणोंकी रक्षाके लिये २२ परीषहोंका जीतना व १२ प्रकार तपश्चरण करना ऐसे चौतीस उत्तरगुण होते हैं । इन उत्तर गुणोंकी रक्षाके लिये देव, मनुष्य, तिथंच व अचेतन कृत चार प्रकार उपसर्गका जीतना व बारह भावनाओंका भावना आदि कार्य किये जाते हैं। भावार्थ-इन दो गाथाओंमें आचार्य ने वास्तवमें परम सामायिक चारित्ररूप निश्चय चारित्रके निमित्तकारणरूप व्यवहार चारित्रका कथन करके उसमें जो दोष हो जाय उनको निवारण करनेवालेको छेदोपस्थापना चारित्रवान बताया है । साधुका व्यवहारचारित्र २८ मूलगुणरूप है। पांच
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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