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________________ तृतीय खण्ड । ॥ २४ ॥ ॥ २५ ॥ अउदूध्या परसाद हैं, वैद शिषरचंद जान । चंद्रन भी वैद्य हैं, कुंजीलाल सुजान गोलसिंघाड़ोंमें लसें, नंदरु मोहनलाल । पारीक्षित अरु लक्षपति, वैद्य सु छोटेलाल खर - औआकी जातिमें, राधेलाल हकीम । वैद रूपचंद्र पालश्री, मेवाराम मुकीम पंडित पुत्लालके, पुत्र सुलाल बसंत । जाति लमेचूमें वसे, तोताराम महंत सकटूमलको आदि दे, धर्मीजन समुदाय । सेवत निज निज धर्मको, मन वच तन उमगाय ॥ २८ ॥ सप्त सुजिन मंदिर लसें गृह चैत्यालय एक । ॥ २६ ॥ ॥ २७ ॥ मुख्य पंसारी टोलमें, कर्णपुरा मधि एक ॥ २९ ॥ ठाड़े शेष सराय में, कटरा नूतन नय । गाड़ीपुरा सुहावना, नूतन अनुपम अग्र ॥ ३० ॥ पंडित मुन्नालाल कृत, बहु धन सफल कराय । धर्मशाल सुखप्रद रची, ठहरो तहं मैं आय ॥ ३१ ॥ साधर्मीनिके संगमें, काल गमाय स्वहेत । [ ३६३ C लिखो दीपिका चरण यह, स्वपर हेत जगहेत ॥ ३२ ॥ पढ़ो पढ़ावो भक्त जन, ज्ञान ध्यान चित लाय । आतम अनुभव चित जगे, संशय सब मिट जाय ॥ ३३ ॥ नर भव दुर्लभ जानके, धर्म करहु सुख होय । सुखसागर वर्धन करो, तत्त्वसार अवलो इटावा (चातुर्मास ) दः ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद । ता० ३-१०-१९२४ ॥ ३४ ॥
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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