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________________ ३४२ श्रीप्रवचनसारीका । menimium निन स्वभाव परमशुद्ध है परन्तु अनादिकालसे काँका आवरण है इससे उपकी अवस्था अशुद्ध हो रही है। अवस्थाले पलटनेके लिये उपाय रत्नत्यधामा नेवन है। व्यवहार रपया निमित्तले जो निश्चय रत्नत्रयका लाभ प्राप्त कर लेते हैं अर्थात अपने ही आत्माके का सपना श्रद्धान ज्ञान रखकर अपने उपयोगको अन्य पदानि का उती निन आत्माले शुख व ज्ञानमें तन्मय कर देते हैं ये ही साधु राग, रेप, गोहकी श के बाहर होने हुए शुन्नेपरोग अशुभोपयोगसे छूटकर शुखोपोली हो जाते हैं-मानो आनागदा समुद्र में मग्न हो जाते हैं । इस योग के धारीमें ही सच्चा श्रमणपना होता है। यह साधु क्षाकगीमें आरूढ़ होकर अपने शुशोपयोगके वलसे रोहनीय, ज्ञानादरणीय, दर्शनावरणीय और अन्नराय कर्माका नाशकर अनंतवलन अनंतज्ञानादि गुणोंका स्वामी अरहत हो जाता है फिर भी शुद्धोपयोगसे बाहर नहीं जाता है। ऐसा शुद्धोपयोगी अरहंत ही कुछ काल पीछे वेदनीय, नाम, गोत्र और आयु कनौको भी क्षयकर निर्वाण प्राप्तकर सिद्ध होजाता है। वहां भी शुद्धोपयोग ही अनंतकाल तक शोभायमान रहता है । आचार्य इसीलिये शुद्धोपयोगीको पुनः पुनः भाव और द्रव्य नमस्कार करते हुए अपनी गाढ़ भक्ति शुद्धोपयोग रूप साम्यंभावकी तरफ प्रदर्शित करते हैं । वास्तवमें शुद्धोपयोग ही अनादि संसारके चक्रसे आत्माको सदाके लिये मुक्त कर देता है । शुद्धोपयोग ही धर्म है। इसीसे धर्म आत्मा नामा पदार्थका स्वभाव है । शुद्ध भाव मोक्षमार्ग भी है तथा मोक्षरूप भी है इस 'शुद्धोपयोगकी महिमा बचनअगोचर है। . .
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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