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________________ तृतीय खण्ड। श्रेष्ट ऐसे तीर्थकर परम देवोंको तथा चैतन्य चमत्कार मात्र अपने आत्माके सम्यक शृद्धान, ज्ञान तथा चारित्ररूप निश्चय रत्नत्रयके आचरण करनेवाले, उपदेश देनेवाले तथा साधनमें उद्यमी ऐसे श्रमण शब्दसे कहने योग्य आचार्य, उपाध्याय तथा साधुओंको वार वार नमस्कार करके साधुपनेके चारित्रको स्वीकार करै । सासादन गुणस्थानसे लेकर क्षीण कपाय नामके बारहवें गुणस्थान तक एक देश मिन कहे जाते हैं तथा शेप दो गुणस्थानवाले केवली मुनि जिनवर कहे जाते हैं, उनमें मुख्य जो हैं उनको निनवर वृषभ था तीर्थकर परमदेव कहते हैं। ___ यहां कोई शंका करता है कि पहले इस प्रवचनसार ग्रन्थके प्रारम्भके समयमें यह कहा गया है कि शिवकुमार नामके महाराजा यह प्रतिज्ञा करने हैं कि मैं शांतभावको या समताभावको आश्रय करता हूँ । अब यहां कहा है कि महात्माने चारित्र स्वीकार किया था। इस कथनमें पूर्वापर विरोध आता है। इसका समाधान यह है कि आचार्य ग्रन्थ प्रारम्भके कालसे पूर्व ही दीक्षा ग्रहण किये हुए हैं किन्तु ग्रन्थ करनेके बहानेसे किसी भी आत्माको उस भावनामें परिणमन होते हुए आचार्य दिखाते हैं । कहीं तो शिवकुमार महाराजको व कहीं अन्य भव्य जीवको । इस कारणसे इस ग्रन्थमें किसी पुरुषका नियम नहीं है और न कालका नियम है ऐसा 'अभिप्राय है। ____भावार्थ-आचार्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य पहले भागमें आत्माके केवलज्ञान और अतींद्रिय सुखकी अदभुत महिमा बता चुके हैंउनका यह परिश्म इसीलिये हुआ है कि भव्य जीवको अपने
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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