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________________ तृतीय खण्ड। [२१ हटाता है तो उसका श्रद्धान तथा ज्ञान उसका क्या हित कर सक्ते हैं ? अर्थात् कुछ भी नहीं कर सक्ते । इससे यह बात सिद्ध हुई कि परमागम ज्ञान, तत्वार्थ श्रद्धान तथा संयमपना इन तीनोंमेंसे केवल दो से वा मात्र एकसे निर्वाण नहीं होसक्ता है, किन्तु तीनोंके मिलनेसे ही मोक्ष होगा। भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है इस वातको प्रगट किया है। श्रद्धान चाहे जैसा करले परन्तु वह श्रद्धान आगम ज्ञानके आधारपर न हो तो उसका ज्ञानरहित श्रद्धान कुछ भी आत्माका हित नहीं कर सक्ता और यदि आगम ज्ञान हो परन्तु श्रद्धान न हो तो वह ज्ञान भी कुछ आत्म-हित नहीं कर सका। यदि मात्र विषय कषायोंको रोके परन्तु तत्वका श्रद्धान व ज्ञान न हो तो भी ऐसे कुचारित्रसे कुछ स्वहित नहीं होसका । इसलिये तीनों अकेले अकेले आत्मकल्याण नहीं कर सके हैं। यदि तीनोंमेंसे दो दो साथ हों तोभी मुक्तिका उपाय नहीं बन सक्ता है। यदि विना ज्ञानके मूढ़-श्रद्धासहित चारित्र पाले तो भी मोक्षमार्ग नहीं, अथवा श्रद्धा विना मात्र ज्ञान संहित चारित्र पाले तौभी मुक्तिका उपाय नहीं होसक्ता, अथवा चारित्र न पालकर केवल आगमज्ञान और श्रद्धानसे मुक्ति चाहे तौभी वह मोक्षमार्ग नहीं पासता । मुक्तिका उपाय तीनोंकी एकता है। इसलिये आचार्य महाराजका यह , उपदेश है कि परमागमसे तत्वोंको समझकर तथा उनका मनन कर मिथ्यात्व व अनंतानुबंधी कषायको जीतकर सम्यग्दर्शनको
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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