SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ ] श्रीप्रवचनसारोका | भावार्थ - इस गाथामें आचार्यने इस बातका विशेष विस्तार किया है कि अपवाद मार्ग क्या है ? वास्तवमें उत्सर्ग भाव सुनि लिंग है अर्थात् परम साम्यभाव या शुद्धोपयोग है या स्वानुभव है । जहां पर न मनसे विचार है न वचनसे कुछ कहना है न कायकी कुछ क्रिया है, यही सुनिका वह सामायिक चारित्र है जो कर्मकी निर्ज-राका कारण है । परन्तु उत्सर्ग मार्ग में अभ्यासी साधुका उपयोग बहुत देर तक स्थिर नहीं होता है इसलिये उसको अपवाद मार्ग में उन उपकरणोंका सहारा लेना पड़ता है जो उनके सामायिक भावमें सहकारी हों । विरोधी न हों। यहां ऐसे चार उपकरणों का वर्णन किया है । (१) परिग्रह व आरंभ रहित निर्विकार शरीर का होना । - यह नग्न भेष उदासीन भावका परम प्रचल निमित्त है । परिग्रह सहित मेष ममत्त्वका कारण है इससे साम्यभावका उपकरण नहीं हो सक्ता (२) आचार्य, व उपाध्याय द्वारा धर्मोपदेशका सुनना व उनकी संगति करना यह भी परिणामों को रागद्वेषसे हटानेवाला / *. - तथा स्वरूपाचरण चारित्र में स्थिर करानेवाला है ( ३ ) विनय-तीथंकरों की भक्ति, बन्दना व गुरुओंकी विनय करना - यथायोग्य शास्त्रोक्त विधिसे सत्कार करना । गुरु च देवकी भक्ति व विनय शुद्धोपयोग लाभमें कारण है । (४) जिनवाणीका अभ्यास करना, यह भी अंतरंग शुद्धिका परम कारण है । व्यवहार नयसे परिग्रह त्याग, देवगुरु भक्ति, गुरुसे उपदेश लेना व शास्त्रको मनन करना ये चार कारण परम सामायिक भावके परमोपकारी हैं। इनको अपवाद इसलिये कहा है कि इन कार्यों में प्रवर्तन करनेसे धर्मानुराग होता है जो पुण्य बंधका कारण है। पुण्यबंध मोक्षका निरोधक है 7. 1
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy