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________________ तृतीय खण्ड। . . [ १५५ भावार्थ-सम्यग्दृष्टी स्त्री पर्यायमें नहीं उपजता यही भाव है (सम्पादक), परंतु प्रायः शब्दका यह खुलाशा पन्ने ९९१में है कि स्त्री व नपुंसक वेदके आठ आठ भंग ( नियम विरुद्ध बातें ) प्रत्येक चौबीसीमें समझना । इसलिये ब्रह्मी, सुन्दरी, मल्लिनाथ, रानीमती प्रमुख सम्यग्दृष्टी होकर यहां उपजे। इस तरह कथनसे यह बात साफ प्रगट होती है कि जब तीर्थकर, चक्रवर्तीपद व दृष्टिवाद पूर्वका ज्ञान स्त्रीको शक्तिहीनता व दोषकी प्रचुरताके कारण नहीं हो सका है तब मोक्ष कैसे हो सक्ती है ? यहां श्री कुंदकुंदाचार्यका यह अभिप्राय है कि पुरुष ही निग्रंथ-दिगम्बर पद धारणकर सका है इसलिये वही तद्भव मोक्षका पात्र है। स्त्रियोंके तदभव मोक्ष नहीं होसक्ती है। वे उत्कृष्ट श्रावकका व्रत रखकर आर्यिकाकी वृत्ति पाल सक्ती हैं और इस वृत्तिसे स्त्री लिंग छेद सोलहवें खर्गतकमें देवपद प्राप्तकर सक्ती हैं, फिर पुरुष हो मुक्ति लाभ कर सक्ती हैं। , श्री मूलाचारके समाचार अधिकारमें आर्यिकाओंके चारित्रकी कुछ गाथाएं ये हैं:'अविकारवत्थवेसा जल्लमलविलित्तचत्तदेहाओ। . धम्मकुलकित्तिदिक्खापडिरूपविसुद्धचरियाओ ॥१६॥ अगिहत्थमिस्सणिलये असण्णिवाए विसुद्धसंचारे। दो तिण्णि व अजाओ बहुगीओ वा सहत्थंति ॥१६॥ ण य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्स गमणिज्जे। गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज ॥ १६२ ।। रोदणहाणभोयणपयणं सुत्तं.च छविहारंभे । विरदाण पादमक्खणधोवण गेयं च ण य कुजा ॥१९॥
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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