SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय खण्ड ।। [१४६ विशेषार्थ-क्योंकि स्त्रियोंको उसी अवसे मोक्ष नहीं होती है इसलिये सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवानने उन आर्निकाओंका लक्षण या चिन्ह वस्त्र आच्छादन सहित कहा है। उनका कुल लौकिकमें घृणाके योग्य नहीं ऐसा जिनदीक्षा योग्य कुल हो । उनका स्वरूप ऐसा हो कि जो बाहरमें भी विकारसे रहित हो तथा अंतरंगमें भी उनका चित्त निर्विकार व शुद्ध हो तथा उनकी वय या अवस्था ऐसी हो कि शरीरमें जीर्णपना या भंग न हुआ हो, न अति बाल हों, न वृद्ध हों, न बुद्धिरहित मूर्ख हों, आचार शास्त्रमें उनके योग्य जो आचरण कहा गया है उसको पालनेवाली हों ऐसी आणिकाएं होनी चाहिये। भावार्थ-जो स्त्रियां आनिका हों उनको एक सफेद सारी पहनना चाहिये यह उनका भेष है, साथमें मोरपिच्छिका व काष्ठका मंडल होता ही है। वे श्रावकसे घर बैठकर हाथमें भोजन करती हैं । जो आर्भिका पद धारे उनका लोकमान्य कुल हो, शरीरमें विकारका व मुखपर मनके विकारका झलकाव न हो तथा उनकी अवस्था बालक व वृद्ध न होकर योग्य हो जिससे वे ज्ञानपूर्वक तपस्या कर सकें । ग्यारहवीं श्रावककी प्रतिमामें जो चारित्र ऐलक श्रावकका है वही प्रायः आर्जिकानीका होता है ॥३८॥ उत्थानिका-आगे कहते हैं कि जो पुरुष दीक्षा लेते हैं । उनकी वर्णव्यवस्था क्या होती है। वण्णेसु तीस एक्को कल्लाणंगो तवोसहो क्यसा । ___ सुमुहो कुंछारहिदो लिंगग्गहणे हवाद जोग्गो ॥३९॥
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy