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________________ १३३ ] arraarariant | भावार्थ - इस गाथा में आचार्यने जिन उपकरणोंको अपवाद मार्ग में साधु ग्रहण कर सक्ता है उनका लक्षण मात्र बता दिया है। पहला विशेषण तो यह है कि वह रागद्वेष बढ़ाकर पाप बंध करानेवाली न हो। दूसरा यह है कि उसको कोई भी असंयमी गृहस्थ चोर आदि कभी लेना न चाहे । तीसरा विशेष यह है कि उसके रक्षण आदिमें मूर्छा या ममता न पैदा हो। ऐसे उपकरणोंको मात्र संयमकी रक्षा हेतुसे ही जितना अल्प हो उतना रखना चाहिये । इसी लिये साधु मोर पिच्छिका तो रखते परन्तु उसको चाँदी सोने में जड़ाकर नहीं रखते । केवल वह मामूली दृढ़ बन्धनोंसे बंधी हो ऐसी पीछी रखते, कमंडल घातुका नहीं रखते काठका कमंडल रखते, उसकी कौन मनुप्य इच्छा करेगा ? तथा शास्त्र भी पढ़ने योग्य एक कालमें आवश्यक्तानुसार थोड़े रखते सो भी मामूली - बन्धन में बंधे हों। चांदी सोनेका सम्बन्ध न हो । साधु इनं वस्तु· ओंको रखते हुए कभी यह भय नहीं करते कि ये वस्तुएं न रहेंगी. तो क्या करूंगा ? इनसे भी ममत्त्व रहित रहते। ये वस्तुएं नगतके लोगोंकी इच्छा बढ़ानेवाली नहीं, तिसपर भी यदि कोई उठा लेजावे तो मनमें कुछ भी खेढ़ नहीं मानते, जबतक दूसरा कोई श्रावक लाकर भक्तिपूर्वक अर्पण न करेंगा तबतक साधु मौंनी रह कर ध्यानमें मग्न रहेगा । इससे विपरीत जो शंका उत्पन्नवाले उपकरण हैं उन्हें साधुको कभी नहीं रखना चाहिये । मूलाचार अनगारभावनामें कहा हैलिंगं वद च सुद्धी वसदिविहारं च भिक्खं गाणं च । उज्मण सुद्धी य पुणो वक्कं च तवं तथा भाणं ॥ ३ ॥ 1
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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