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________________ (११) द्रव्य भी खूब कमाया ( जिसका ही यह परिणाम है कि आपकी इस गढ़ाई कमाईका उपयोग इस उत्तम मार्ग-शास्त्रदानमें होरहा है।). पश्चात् १९७१ में गल्ले वगैरहकी आइतका काम होमगंज वागारमें अपने पिताजीके नाम 'हलासराय भगवानदास'से शुरू किया जो आज भी आप आनंदके साथ कर रहे हैं व द्रव्य कमा रहे हैं। श्रीमान् जैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर पूज्य ब्रह्मचारीनी शीतलप्रसादनी विगत वर्ष चातुर्मासके कारण आषाढ़ सुदी १४से कार्तिक सुदी ११तक इटावा ठहरे थे तब आपके उपदेशसे इटावाके भाईजो धर्मस प्रायः विमुख थे-फिर धर्ममार्गमें लगगए । इटावामें जो आज कन्याशाला व पाठशाला दृष्टिगत होरही है वह आपके ही उपदेशका फल है । ला० भगवानदासजीके छोटे भाई लक्ष्मणप्रसादनीपर आपके उपदेशका भारी प्रभाव पड़ा, जिससे आपने २०)रु० मासिक पाठशालाको देनेका बचन दिया। इसके अलावा और भी बहुत दान किया व धर्ममें अच्छी रुचि हो गई है। इसी चातुर्मासमें पुज्य ब्रह्मचारीजीने चारित्रतत्वदीपिका (प्रवचनसार टीका तृतीय भाग) की सरल भाषा बचनिका अनेक ग्रन्थोंके उदाहरणपूर्ण अर्थ भावार्थ सहित लिखी थी, जो ब्रह्मचारीजीके उपदेशानुसार ला० भगवानदासनीने अपने द्रव्यसे मुद्रित कराकर जैनमित्रके २६ वें वर्षके ग्राहकोंको २४५१में भेटकर जिनवाणी प्रचारका महान् कार्य किया है । आपकी यह धर्म व निनवाणी भक्ति सराहनीय है। आशा है अन्य लक्ष्मीपुत्र भी इसी प्रकार अन्य लिखी जानेवाली टीकाओंका प्रकाशन कराकर व ग्राहकोंको पहुंचाकर धर्मप्रचारमें अपना कुछ द्रव्य खर्च करेंगे। प्रकाशक।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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