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________________ m hemama श्रीप्रवचनसार भाषाटीका। कुछ मिल भी गए होंगे । यही धौव्यपना है। यह लोक कोई विशेष वस्तु नहीं है किन्तु सत्ता रूप सर्व द्रव्योंके समुदायको लोक कहते हैं । मितने द्रव्य लोकमें हैं वे सदासे हैं सदा रहेंगे क्योंकि वे सब ही द्रव्य द्रव्य और अपने सहभावी गुणोंकी अपेक्षा अविनाशी नित्य हैं परन्तु अवस्थाएं समय १ होती हैं वे अनित्य हैं क्योंकि पिछली अवस्था बिगड़कर अगली भवस्था होती है। इसी लिये द्रव्यका लक्षण उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप है। द्रव्य का दूसरा लक्षण गुंग पर्यायवान कहा है सो भी द्रव्यमें सदा पाया जाता है । एक द्रव्य अनंत गुणोंका समुदाय है । ये गुण उस समुदायी द्रव्यमें सदा साथ साथ रहते हैं इस लिये गुणोंकी ही नित्यता या प्रौव्यता रहती है । गुणके विकारको पर्याय कहते हैं। हरएक गुण परिणमनशील है-इसलिये हरएक समयमें पुरानी पर्यायका व्यय और नवीन पर्यायका उत्पाद होता है परन्तु पर्यायोसे रहित गुण होते नहीं इसलिये द्रव्य गुण पर्यायवान होता है यह लक्षण भी द्रव्पका हर समय द्रव्यमें मिलना चाहिये। यहां एक बात और माननी योग्य है कि एक द्रव्यमें बन्धन प्राप्त दसरे द्रव्यके निमित्तसे को पर्याय होती हैं वे अशुद्ध या विभाव पर्याय कहलाती हैं और मो द्रव्यमें विभावकारक द्रव्यका निमित्त न होनेपर पर्यायें होती हैं उनको स्वभाव या सदृश पर्याय कहते हैं । जब जीव पुद्गल कर्मके बन्धनसे ग्रसित है तब इसके विभाव पर्याय होती है। परन्तु जब जीव शुद्ध हो जाता है तब केवल स्वभाव पर्यायें ही होती हैं। इस गाथामें आचार्यने पहले तो यह बताया है कि जब यह मात्मा शुद्ध हो जाता है तन.
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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