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________________ " ५८ ] श्रीप्रवचनसार भापाटीका । अंतरंग तत्त्व आत्मा और बाह्य तत्त्व अन्य पदार्थ इनको वर्णन करने के लिये पहले ही एकसौ एक गाथामें ज्ञानाधिकारको कहेंगे। इसके पीछे एकसौ तेरा गाथाओं में दर्शनका अधिकार कहेंगे । उसके पीछे सत्तानवें गाथाओं में चारित्रका अधिकार कहेंगे । इस तरह समुदायसे वीनसौ ग्यारह सूत्रोंसे ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप तीन महा अधिकार हैं । अथवा टीकाके अभिप्रायसे सम्यग्ज्ञान, 'ज्ञेय और चारित्र अधिकार चूलिका सहित गधिकार तीन हैं । इन तीन अधिकारों में पहले ही ज्ञान नामके महाअधिकार में बहत्तर गाथा पर्यंत शुद्धोपयोग नामके अधिकारको कहेंगे । इन ७२ गाथाओंके मध्य में "एस सुरासुर" इस गाथाको मादि लेकर पाठ क्रमसे चौदह गाथा पर्यंत पीठिकारूप कथन है जिसका व्याख्यान कर चुके हैं। इसके पीछे ७ सात गाथाओं तक सामान्यसे सर्वज्ञकी सिद्धि करेंगे। इसके पीछे तेतीस गाथाओंमें ज्ञानका वर्णन है । फिर अठारह गाथा तक सुखका वर्णन है । इस तरह अंतर अधिकारोंसे शुद्धोपयोगका अधिकार है। आगे पचीस गाथा तक ज्ञान कंलिका चतुष्टयको प्रतिपादन करते हुए दूसरा अधिकार है । इसके पीछे चार स्वतंत्र गाथाएं हैं इस तरह एकसौ एक गाथाओं के द्वारा प्रथम महा अधिकार में समुदाय पातनिका जाननी चाहिये । यहां पहली पातनिका अभिप्रायले पहले ही पांच गाथाओं तक पांच परमेष्टीको नमस्कार आदिका वर्णन है, इसके पीछे सात गाथाओं तक ज्ञानकंठिका चतुष्टयकी पीठिकाका व्याख्यान है इनमें भी पांच स्थल हैं। जिसमें आदिमें नमस्कारकी मुख्यतासे गाथाएं
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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