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________________ aaaaaaaaaaaa ३८] श्रीवकामार भाषाटीका । नहीं है किन्तु स्फटिकमणिमें ऐसी परिणमन शक्ति है जो निम रंगके हांकका संयोग मिलेगा उस रंगरूप नगीने के भावको झलकायेगा। हरएक वस्तुको परिणमन शक्ति भिन्न है तथा विजातीय वस्तु ऑमें विजातीय परिणमा होते हैं। जैसे चैतन्य स्वरूप मात्माका परिणमन चेतनमई तथा जड़ पुदलका परिणमन जड़ रूप अचेतन है । एक पुस्तक रखे खखे पुरानी पड़ जाती है क्योंकि उसमें परिणमन शक्ति है । इसीसे जब परिणयन होना द्रव्यमें सिद्ध है तब शुरु द्रव्य भी इस परिणमन शक्तिको कभी न त्यागकर परिधमन करते रहते हैं। इस तरह सर्व ही द्रव्य तथा मात्मा परिएमन स्वभाव हैं ऐसा सिद्ध हुभा । जब यह सिद्ध होगया कि मात्मा या सर्व द्रव्य परिणगन रवभान है तब परिणाम या पर्याय द्रव्यमें सदा ही पाए जाते हैं । जैसे गुण सदा पाए जाते हैं कैसे पर्यायें सदा पाई जाती हैं इसी लिये द्रव्य गुण पर्यायवान है यह सिद्ध है-गण और पर्याय जन्तर यही है कि गुण सदा वे ही द्रव्यमें मिलते हैं जब कि पयायें सदा भिनर मिलती हैं। जिस समय एक पर्याय पैदा होती है उसी समय पिछली पर्यायका नाश होता है या यों पहिये कि पिछली पर्यायका नाश उसीको नवीन पर्यायका उत्पाद कहते हैं। इसलिये द्रव्य में पर्यायकी अपेक्षा हरममय उत्पाद और व्यय अर्थात् नाश सदा पाए जाते हैं तथा गृण महमादी रहते हैं इस वे ध्रौव्य या अविनाशी कहलाते है। इसी अपेक्षा जहां “त् इन्यलक्षणं " पहा है वहां सतको उत्पाद व्यय प्रौव्वरूप कहा है । अर्थात् द्रव्य तब ही मान सक्ते हैं नव द्रव्यमें ये उत्पाद व्यय प्रौव्य तीनों दशाएं हरसमयमें
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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