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________________ rammar marria ३६] श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । भावार्थ-यहाँपर आचार्य यह दिखलाते हैं कि हरएक पदार्थ परिणाम स्वभावको रखनेवाला है तथा वह परिणाम पलटता रहता है तो भी पदार्थ बना रहता है तथा परिणाम पदार्थसे कोई भिन्न वस्तु नहीं है । द्रव्य गुण पर्यायोंका समुदाय है जैसा कि. श्री उमास्वामी आचार्यने भी कहा है "गुणपर्ययावत् दन्न । इनमेंसे गुण सहभावी होते हैं अर्थात गुणोंका और द्रव्यका कमी भी संबंध छूटता नहीं है, न गुण द्रबके विना कड़ी पाए जाते हैं न न्य कभी गुण विना निर्गुण होसका है । गुणों के भीतर सदा ही पर्यायें हुआ करती हैं। गुणोंकी अवस्था कभी एकसी रहती नहीं। यदि गुण बिलकुल अपरिणामीके हो अर्थात् जैसेके तैसे पड़े रहें कुछ भी विकार अपने में न करें तो उन गुणोंसे भिन्न २ कार्य न उत्पन्न हो । जैसे यदि दुधको चिकनाई दूधमें एकसी दशामें बनी रहे तो उसमें घी आदिकी चिकनई नहीं बनसकी है। यहां पर यह बराबर ध्यान में रखना चाहिये कि द्रव्य अपने सीगमें अवस्थाको पलटता है इससे उसके सब ही गुण साथ साथ पलट जाते हैं। दुप द्रव्य पलटकर मक्खन छाछ तथा घी रूप होनाता है । उस द्रव्यमें जितने गुण हैं उनमेंसे मिलकी मुख्यता करके देखें वह गुण पलटा हुशा प्रगट होता है। धोकी चिकनईको देखें नो दूधकी चिकनईसे पल्टी हुई है। घीके स्वादको देखें तो दूधके स्वादसे पलटा हुआ स्व द है। घीके वर्णको देखें तो धके वर्णसे पटा हुआ वर्ण है। आकारपना अर्थात् प्रदेशत्व भी द्रव्यका गुण है । आकार पलटे बिना एक द्रव्यकी दो अवस्थाएं जिना साकार मिन्न ? हो नहीं होती हैं। एक सुवर्णके
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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